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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 13 अगस्त 2025 (14:33 IST)

भारत ने कैसे जीता सियाचिन, पढ़िए पाक के नापाक इरादों को ध्वस्त करने की कहानी ‘ऑपरेशन मेघदूत’

ऑपरेशन मेघदूत किससे संबंधित है
operation meghdoot: सियाचिन, ये नाम सुनते ही आंखों के सामने बर्फीले तूफानों, दुर्गम चोटियों और जमा देने वाली ठंड का मंजर आ जाता है। सियाचिन विश्व का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र पर, जहां सांस लेना भी एक चुनौती है, भारत ने कैसे अपना अधिकार स्थापित किया? आइये जानते हैं साहस, दृढ़ संकल्प और एक गुप्त ऑपरेशन की यह कहानी है जिसे "ऑपरेशन मेघदूत" के नाम से जाना जाता है।

सियाचिन का सामरिक महत्व:
सियाचिन ग्लेशियर काराकोरम पर्वतमाला में स्थित है और लगभग 76 किलोमीटर लंबा है। यह न केवल सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां से निकलने वाली नदियां भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। विभाजन के बाद, सीमा रेखा का निर्धारण करते समय, मानचित्रों पर केवल NJ9842 नामक एक बिंदु को अंतिम छोर के रूप में चिह्नित किया गया था। इसके आगे, यह मान लिया गया था कि दुर्गम इलाका होने के कारण यहां किसी की स्थायी उपस्थिति नहीं होगी।

हालांकि, 1980 के दशक की शुरुआत में, भारतीय खुफिया एजेंसियों को यह जानकारी मिली कि पाकिस्तान इस क्षेत्र पर चुपचाप अपना दावा मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तानी पर्वतारोही अभियानों को इस क्षेत्र में देखा गया और यह आशंका बढ़ गई कि पाकिस्तान जल्द ही सियाचिन के महत्वपूर्ण दर्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेगा। यह भारत के लिए एक गंभीर खतरा होता, क्योंकि इससे लद्दाख क्षेत्र तक उसकी पहुंच कमजोर हो जाती।

ऑपरेशन मेघदूत:
इस खतरे को भांपते हुए, भारत ने एक साहसिक सैन्य अभियान की योजना बनाई, जिसका नाम रखा गया "ऑपरेशन मेघदूत"। इस ऑपरेशन का उद्देश्य सियाचिन ग्लेशियर के महत्वपूर्ण दर्रों - सिया ला (Sia La) और बिलाफोंड ला (Bilafond La) - पर भारतीय सेना का नियंत्रण स्थापित करना था, इससे पहले कि पाकिस्तानी सेना ऐसा कर पाती।

यह ऑपरेशन किसी चुनौती से कम नहीं था। सैनिकों को अत्यधिक ठंड, ऑक्सीजन की कमी और दुर्गम रास्तों का सामना करना था। साजो-सामान और रसद पहुंचाना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। लेकिन भारतीय सेना के जवानों ने अद्भुत साहस और दृढ़ता का परिचय दिया।

13 अप्रैल 1984 को, ऑपरेशन मेघदूत शुरू हुआ। भारतीय वायुसेना ने Mi-8 और चेतक हेलीकॉप्टरों की मदद से सैनिकों और उपकरणों को सियाचिन के बर्फीले ऊंचाइयों पर पहुंचाना शुरू कर दिया। यह एक जोखिम भरा काम था, क्योंकि दुश्मन की फायरिंग और खराब मौसम कभी भी मुश्किलें खड़ी कर सकते थे।

भारतीय सैनिकों ने विपरीत परिस्थितियों में भी तेजी से कार्रवाई करते हुए सिया ला और बिलाफोंड ला दर्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। उन्होंने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अन्य चोटियों पर भी अपनी चौकियां बना लीं। पाकिस्तान को जब इस ऑपरेशन की खबर मिली, तो उसने भी जवाबी कार्रवाई करने की कोशिश की, लेकिन तब तक भारत ने महत्वपूर्ण स्थानों पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी।

NJ9842 का ऐतिहासिक महत्व:
NJ9842 वह महत्वपूर्ण बिंदु था जिसने सियाचिन विवाद की नींव रखी। मानचित्रों पर इस बिंदु के आगे सीमा रेखा स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं थी। इसी अस्पष्टता का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर अपना दावा जताना शुरू कर दिया था। ऑपरेशन मेघदूत ने न केवल सियाचिन पर भारत का नियंत्रण स्थापित किया, बल्कि NJ9842 के उत्तर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Control - LOC) को भी प्रभावी रूप से परिभाषित कर दिया।

आज, सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सेना की स्थायी उपस्थिति है। हमारे जवान दुर्गम परिस्थितियों में भी देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं। ऑपरेशन मेघदूत भारतीय सैन्य इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है, जो हमारे सैनिकों के अदम्य साहस और रणनीतिक कौशल का प्रतीक है। यह कहानी हमें सिखाती है कि दृढ़ संकल्प और सही योजना के साथ, किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है, चाहे वह प्रकृति की कठोरता हो या दुश्मन की साजिश। सियाचिन की विजय, NJ9842 के इतिहास के साथ मिलकर, भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का जीवंत प्रमाण है।