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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 12 अगस्त 2025 (18:03 IST)

79 वां स्वतंत्रता दिवस: भारत विभाजन के समय भोपाल का इस तरह हुआ विलय

15 august 1947 history in hindi
15 august independence day: भारत विभाजन की घोषणा होने के बाद 10 लाख लोग मारे गए थे हालांकि एक अन्य अनुमान के मुताबिक 20 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे। भारत विभाजन के दौरान बंगाल, सिंध, हैदराबाद, भोपाल, कश्मीर और पंजाब में दंगे भड़क उठे थे। जूनागढ़, हैदराबाद, त्रावणकोर, भोपाल के राजा स्वतंत्र होना चाहते थे जबकि कश्मीर के राजा ने कोई निर्णय नहीं लिया था। जानिए कि भोपाल के नवाब ने किस तरह किया था विद्रोह।
 
15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिलने के उपरांत भोपाल के नवाब ने अपने चैम्बर ऑफ प्रिंसेस को अधिकृत कर कार्यरत घोषित कर दिया। भोपाल का नवाब 25 जुलाई 1947 की उस बैठक में भी नहीं गया था जिसको माउंटबेटन ने दिल्ली में आहूत किया था। उसने कह दिया था कि यह बैठक घोंघों को दरियाई घोड़े और कठफोड़वे के साथ चाय पीने के लिए बुलावा देने के समान है। नवाब भोपाल को आजाद मुल्क बनाना चाहते थे, जबकि यहां की जनता हिंदू बहुल थी।
 
भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की रियासत भोपाल, सीहोर और रायसेन तक फैली हुई थी। इस रियासत की स्थापना 1723-24 में औरंगजेब की सेना के बहादुर अफगान योद्धा दोस्त मोहम्मद खान ने सीहोर, आष्टा, खिलचीपुर और गिन्नौर को जीतकर स्थापित की थी। 1728 में दोस्त मोहम्मद खान की मृत्यु के बाद उसके बेटे यार मोहम्मद खान के रूप में भोपाल रियासत को अपना पहला नवाब मिला था। मार्च 1818 में जब नजर मोहम्मद खान नवाब थे तो एंग्लो भोपाल संधि के तहत भोपाल रियासत भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य की प्रिंसली स्टेट हो गई। 1926 में उसी रियासत के नवाब बने थे हमीदुल्लाह खान।
 
नवाब हमीदुल्लाह 14 अगस्त 1947 तक ऊहापोह में थे कि वे क्या निर्णय लें। जिन्ना उन्हें पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद देकर वहां आने की पेशकश दे चुके थे और इधर रियासत का मोह था। 13 अगस्त को उन्होंने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल रियासत का शासक बन जाने को कहा ताकि वे पाकिस्तान जाकर सेक्रेटरी जनरल का पद सभाल सकें, किंतु आबिदा ने इससे इनकार कर दिया। 
 
भोपाल का विलय:
मार्च 1948 में नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा की। मई 1948 में नवाब ने भोपाल सरकार का एक मंत्रिमंडल घोषित कर दिया था जिसके प्रधानमंत्री चतुरनारायण मालवीय थे। अक्टूबर 1948 में नवाब हज पर चले गए और दिसंबर 1948 में भोपाल के इतिहास का जबरदस्त प्रदर्शन विलीनीकरण को लेकर हुआ, कई प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए गए जिनमें ठाकुर लाल सिंह, डॉ. शंकरदयाल शर्मा, भैंरो प्रसाद और उद्धवदास मेहता जैसे नाम भी शामिल थे। पूरा भोपाल बंद था। राज्य की पुलिस आंदोलनकारियों पर पानी फेंककर उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी।
 
इन सबके बीच सरकार के प्रतिनिधि वीपी मेनन एक बार फिर से भोपाल आए। मेनन ने नवाब को स्पष्ट शब्दों में कहा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता। भौगोलिक, नैतिक और सांस्कृतिक नजर से देखें तो भोपाल मालवा के ज्यादा करीब है इसलिए भोपाल को मध्यभारत का हिस्सा बनना ही होगा। वायसराय माउंटबेटन ने भोपाल के नवाब को समझाया और उसे भारत के साथ विलय प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित किया, जिसने उसे कुछ हिचकिचाहट के साथ मान लिया।
 
अंतत: 1 जून 1949 को भोपाल रियासत भारत का हिस्सा बन गई। केंद्र द्वारा नियुक्त चीफ कमिश्नर एनबी बैनर्जी ने कार्यभार संभाल लिया और नवाब को मिला 11 लाख सालाना का प्रिवीपर्स। भोपाल का विलीनीकरण हो चुका था। लगभग 225 साल पुराने (1724 से 1949) नवाबी शासन का अंत हुआ।
- Anirudh joshi