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Last Updated : बुधवार, 13 अगस्त 2025 (15:49 IST)

स्वतंत्रता दिवस विशेष: एआई युग में उत्तरोत्तर प्रगति करता भारत

Independence Day of India 2025
Independence Day of India: भारत भारती के वैभव का गान हो रहा, नभमण्डल में स्वाधीनता के प्रति सम्मान हो रहा, क़दम-क़दम पर भारतीय बढ़ रहे प्रगति पथ, यहीं भारतीय मेधा का सम्मान हो रहा। भारत की मेघा का लोहा तब भी अंग्रेज़ी हुक़ूमतों ने मान लिया और आज भी वैश्विक रूप से भारत अपनी प्रगति के पांचजन्य को निरंतर बजा रहा है।ALSO READ: स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: भारत के आदर्श नागरिक के तौर पर आपकी क्या-क्या जिम्मेदारियां हैं?

शंखनाद न केवल बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रहने के लिए मकान के लिए हुए जबकि अब तो चंद्रमा का दक्षिण ध्रुव भी हमसे दूर नहीं और अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने वाले पहले इसरो अंतरिक्ष यात्री बने भी भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला है।
 
भारत के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र में एक ऐतिहासिक दिन बन गया, जब भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर क़दम रखा। इसके साथ ही, वह पहले भारतीय बने, जो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर पहुंचे और 41 साल बाद किसी भारतीय ने अंतरिक्ष की यात्रा की। इससे पहले 1984 में विंग कमांडर राकेश शर्मा ने सोवियत संघ से उड़ान भरी थी। शुभांशु शुक्ला एक्सिओम स्पेस के प्राइवेट मिशन-4 के तहत अमेरिकी कंपनी स्पेस एक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान ‘ग्रेस’ में सवार होकर अंतरिक्ष पहुंचे।
 
भारत हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है, विश्व की कतार निगाहें भारत की ओर आशाभरी भी हैं और भयाक्रांत भी। आशाभरी इसलिए कि भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा देश होने के साथ-साथ विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार भी है। तकनीकी रूप से दक्ष युवाओं का यह देश अब न केवल तकनीक में विश्व के साथ क़दमताल कर रहा है बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य, मेडिसिन, उन्नत उपचार और रक्षा में भी अपनी प्रतिभा दिखा चुका है। 
 
कोरोना जैसी भयावह महामारी के उपचार का टीका भी और उन्नत आयुर्वेदिक उपचार भी भारत की देन है। हमारे बनाए रडार और अन्य रक्षा उपकरणों का जलवा विश्व ने ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान बख़ूबी देखा। एआई युग में भी भारत के प्रतिभावान युवा अपना जौहर लगातार दिखाते हुए समृद्ध उपकरणों को तैयार कर रहे हैं।
 
इन सबके साथ उम्दा साहित्य और बेहतरीन दर्शन तो भारत की ही देन है। विश्व साहित्य में जो चीज़ें बाद में अनुसरण करके पहुंचीं, वह सदियों पहले भारतीय संत परम्परा के साहित्यकारों ने बुन दी और जिससे आज भी विश्व प्रेरणा लेता है।

जैसे कि महाकवि कालिदास ने अपने नाटक ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ में मेघ से प्रेम पत्रों को भेजने यानी बादलों को संवाद का माध्यम दर्शाया, नाटक के चौथे अंक में, शकुंतला अपने पति दुष्यंत के आश्रम से विदा हो रही है, और वह बादलों के माध्यम से दुष्यंत को संदेश भेजने का अनुरोध करती है। यह संवाद नाटक में भावनात्मक गहराई और विरह का तत्त्व जोड़ता है। उसी तकनीक को आधार बनाकर आज मोबाइल कार्य कर रहे हैं यानी भारतीय साहित्य ने सदैव दूरदृष्टि प्रदान कर प्रेरित किया है।
 
वैश्विक वैभव्य के इस दौर में भारतीयों को अधिक सुविधासंपन्न बनाने की ओर सरकारों को लगातार प्रयासरत होना चाहिए। साहित्य के लिए उम्दा वातावरण और प्रोत्साहन आवश्यक तत्त्व है, जो सरकारों से अपेक्षित भी है। हम बनाना चाहते हैं स्वर्ग सम भारत, इसलिए आवाज़ को ऊंचा रखा है। स्वाधीनता दिवस की 78वीं वर्षगांठ पर प्रत्येक भारतीय संकल्प लें कि भारत के परम वैभव की स्थापना में सदा सहाय रहेंगे।
 
[लेखक डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)ALSO READ: 79 वां स्वतंत्रता दिवस: भारत विभाजन के समय भोपाल का इस तरह हुआ विलय