हम-तुम खेलें फाग
फागुनी दोहे
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माणिक वर्मा फागुन को लगने लगे, वैसाखी के पाँवइसीलिए पहुँचा नहीं, अब तक अपने गाँव।क्या वसंत का आगमन, क्या उल्लू का फागअपनी किस्मत में लिखा, रात-रातभर जाग। जरा संभल कर दोस्तों, मलना मुझे अबीरकई लोगों का माल है, मेरा एक शरीर।देख नहाए रूप को, पानी हुआ गुलालरक्त मनुज का फेंक कर, उसमें विष मत डाल।उस लड़की को देखकर, उग आई वो डालजिस पर कि मसले गए, एक कैरी के गाल।मछुआरे के जाल में, मछली पीवे रेतबगुले उसको दे रहे, लहरों के संकेत।यदि भूख के खेल का, होता यहाँ क्रिकेटमिनटों मे चीं बोलता, तेंदूलकर का बैट।मत इतराए लाज पर, नया बजट है नेकबड़ी आई बाजार में, ये चूनर भी फेंक।काया सदियों सी हुई, नैना अति प्राचीनपुरातत्व प्रेमी कहें, दिल्ली ब्यूटी क्वीन।घूँघट तक तो ठीक था, बोली मारे घावहलवाई के गाँव में, चीनी का ये भाव।कोयल बोली कूक कर, आओ प्रियवर कागयही समय की माँग है, हम-तुम खेलें फाग।कीचड़ उनके पास था, मेरे पास गुलालजो भी जिसके पास था, उसने दिया उछाल।जली होलियाँ हर बरस, फिर भी रहा विषादजीवित निकली होलिका, जल-जल मरा प्रहलाद।पानी तक मिलता नहीं, कहाँ हुस्न और जामअब लिक्खे रुबाइयाँ, मियाँ उमर खय्याम।होली श्रयगरीब की, लपट न उठने पाएज्यों दहेज बिन गूजरी, चुप-चुप जलती जाए।वो और सहमत फाग से, वह भी मेरे संगकभी चढ़ा है रेत पर, इन्द्रधनुष का रंग।एक पिचकारी नेह की, बड़ी बुरी है मारपड़े तो मन की झील भी, पानी माँगे उधार।आज तलक रंगीन है, पिचकारी का घावतुमने जाने क्या किया, बड़े कहीं के जाव।जिन पेड़ों की छाँव से, काला पड़े गुलालउनकी जड़ में बावरे, अब तो मठ्ठा डाल।बिल्ली काटे रास्ता, गोरी नदी नहायचल खुसरो घर आपने, फागुन के दिन आए।उधर आम के बौर से, कोयल रगड़े गालइधर तू छत पर देख तो, वासंती का हाल।अमलतास को छेड़ती, यूँ फागुनी बयारजैसे देवर के लिए, नई भाभी का प्यार।पनवाड़ी का छोकरा, खड़ा कबीरा गायदरवाजे की ओट से, कैसे फागुन आए।दृष्टि यदि इनसान की, पिचकारी हो जाएकोई दामन आपको, उजला नजर न आए।क्या होली के रंग हैं, इस अभाव के संगगोरी भीतर को छिपे, बाहर झाँके अंग।आशिक और कम्यूनिस्ट की, एक सरीखी रीतजब तक मुखड़ा लाल है, तब तक इनकी प्रीत।हम हैं धब्बे रंग के, पीड़ा की औलादजीवनभर न हो सके, आँचल से आजाद।
आसमान का इन्द्रधनुष, कौन धरा पर लाएजब कीचड़ से आदमी, इन्द्रधनुष हो जाए।क्या वसंत की दोस्ती, क्या पतझ़ड़ का साथहम तो मस्त कबीर हैं, किसके आए हाथ।ऑक्सीजन पर शहर है, जीवित न रह जाएमरने वालों देखना, हम पर आँच न आए।क्या धनिया के आज तक, कोई सपन फगुनायहोरी मिले तो पूछना, वोट किसे दे आए।जनता कितनी श्रेष्ठ है, जब चाहे फँस जाएपहले भीगे रंग में, फिर चूना लगवाए।