सिंथेटिक रंगों के प्रति जागरूक हुई गुलाबी नगरी
होली के रंगों में घुली नफासत, गुलाल की मच रही धूम
गुलाल एवं हर्बल रंगों की मच रही धूम
जयपुर। बदलते परिवेश में होली मनाने के तौर-तरीकों में भी बदलाव आया हैं। जहां पहले होली का नाम आते ही कीचड़, काला तेल, गंदे नाले का पानी जहन में दौड़ता था वहीं अब लोगों में स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इनके दुष्प्रभावों को लेकर जागरूकता आ रही है और कीचड़ का स्थान महकते गुलाल ने ले लिया है।पानी की बचत और सिंथेटिक रंगों के नुकसान के प्रति बढ़ती जागरूकता गुलाबी नगरी में गुलाल एवं हर्बल रंगों की बढ़ती बिक्री के तौर पर नजर आ रही है। रंग विक्रेताओं की मानें तो सिंथेटिक रंगों की बिक्री पिछले कुछ सालों में घटी है।शहर में गुलाल के एक थोक विक्रेता ओमप्रकाश अग्रवाल ने बताया कि होली खेलने में आजकल पानी का उपयोग कम होता जा रहा है। इसी कारण गुलाल की बिक्री पिछले साल के मुकाबले 40 से 50 प्रतिशत बढ़ी है।
उन्होंने बताया कि लोग आजकल परंपरागत तरीके से हटकर सूखी होली और शालीनता, सभ्यता के साथ खेलना ज्यादा पसंद करते हैं। इसी वजह से होली मनाने के तरीके में भी बदलाव देखा जा सकता है।अग्रवाल ने बताया कि इन दिनों किसी विषय विशेष पर आधारित होली का त्योहार मनाने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है और ज्यादातर लोग परिवार, मित्रों के साथ फॉर्म हाउस या रिजॉर्ट में होली का त्योहार मनाना ज्यादा पसंद करते हैं।उन्होंने बताया कि ज्यादातर लोगों की पसंद गुलाबी, केसरिया, हरा, पीला और लाल रंग होता है। अन्य रंगों की मांग नहीं के बराबर होती है।