ओंठ पर है पलाश की लाली
फागुनी कविता
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चंद्रसेन 'विराट' खेलने फाग चली आई हो,पूर्णतः रंग में नहाई हो,अपनी सखियों में अलग हो सबसेसबकी आँखों में तुम समाई हो। फाग वाले प्रसंग की कवितारंग पर है ये रंग की कविता,भीगे वस्त्रों ने स्पष्ट लिख दी हैअंग पर यह अनंग की कविता।आज अवसर है दृग मिला लेंगेप्यार को अपने आजमा लेंगे,कोरा कुरता है हमारा भी, हम कोरी चूनर पे रंग डालेंगे।तुम तो बिन रंग रंगी रूपाली,चित्रकारी है ये यौवन वाली,गाल पर है गुलाल की रक्तिमओंठ पर है पलाश की लाली।कोई हो ढब या ढंग फबता हैसब तुम्हारे ही संग फबता है,रूप-कुल से हो, जाति से सुंदरतुम पे हर एक रंग फबता है।