उस छोटी लड़की के लिए वे डरने और कतराने की चीज थे। रोज सुबह काम पर जाने से पहले वे उसके कमरे में आकर उसे चूमते, जिसका जवाब मिलता 'गुडबाय पापा' और जब सड़क पर उनकी गाड़ी का शोर धीमा, और धीमा होता जाता तो आह, वह राहत की साँस लेती।
शाम को जब वे घर आते तो वह जीने में खड़ी होकर हॉल में उनकी ऊँची आवाज सुनती रहती- 'मेरे लिए ड्राइंग-रूम में चाय लाओ...' पेपर क्या अब तक नहीं आया। माँ, जरा देखो, अख़बार बाहर तो नहीं पड़ा... और मेरी चप्पलें ले आओ।
'केजिया', माँ उसे बुलाती, 'मेरी अच्छी बच्ची, आओ, और पापा के जूते उतार दो।' वह धीरे से सीढ़ियों पर उतरती, उससे भी धीरे से हॉल में जाती और ड्राइंग रूम का दरवाजा खोलती। इस समय तक वे चशमा पहन चुके होते और केजिया की तरफ़ देखते। पता नहीं क्यों, वह डर जाती।
'अच्छा केजिया, चलो, जल्दी करो और इन जूतों को बाहर ले जाओ। आज तुम अच्छी लड़की की तरह तो रहीं।'
'मुझे प-प-पता नहीं, पापा।'
'तुम्हें प-प-पता नहीं। अगर तुम इसी तरह हकलाती रहीं तो तुम्हें डॉक्टर के पास ले जाना होगा।'
वह दूसरे लोगों के सामने कभी नहीं हकलाती थी। लेकिन पापा के सामने हकलाने लगती, क्योंकि वह ठीक से बोलने की बहुत ज्यादा कोशिश करती।
'क्या बात है? तुम ऐसी क्यों लग रही हो। माँ, जरा इस लड़की को सिखाओ कि यह हमेशा आत्महत्या के लिए तैयार न लगे... केजिया, इस कप को ठीक से टेबल तक ले जाओ।'
वे बहुत बड़े थे- उनके हाथ और गरदन। ख़ासतौर से उनका मुँह, जब वो जम्हाई लेते। केजिया को उनके बारे में सोचना कहानियों में सुने किसी दानव के बारे में सोचने जैसा लगता।
रविवार की दोपहर को दादी उसे नीचे भेज देतीं 'माँ-पापा से अच्छी बातचीत के लिए।' लेकिन वह हमेशा माँ को कुछ-न-कुछ पढ़ते पाती और पापा को सोफे पर लेटकर नींद लेते हुए। चेहरे पर रूमाल और पैर सबसे अच्छे कुशन पर।
वह स्टूल पर बैठ जाती। गंभीरता से उन्हें तब तक देखती रहती, जब तक वो उठकर अँगड़ाई लेते, समय पूछते और तब उसकी तरफ़ देखते।
'इस तरह मत घूरो केजिया। तुम छोटी, भूरी उल्लू जैसी लगती हो।'
एक दिन जब वह ठंड के कारण घर में ही थी, दादी ने उसे बताया कि पापा का जन्मदिन अगले हफ्ते है। उसे उपहार में देने लिए पीले सिल्क का एक पिन-कुशन बनाना चाहिए।
बड़ी मेहनत से कपड़ा दोहरा करके उसने तीन कोने सी लिए, लेकिन इसमें भरा क्या जाए? दादी बाहर बग़ीचे में थी और वह माँ के कमरे में कतरनें खोजने में लग गई। टेबल पर अच्छे काग़जों का ढेर लगा था। उसने उनके टुकड़े करके पिन-कुशन में भर लिया और चौथा कोना भी सी दिया।
उस रात घर में हंगामा मच गया। पापा का ‘पोर्ट अथॉरिटी’ के लिए लिखा भाषण गायब हो गया। कमरों में खोज हुई-नौकरों से पूछताछ हुई। अंत में माँ केजिया के कमरे में आई। ‘केजिया! तुमने हमारे कमरे में टेबल पर पड़े कुछ काग़ज तो नहीं देखे।'
'ओह हाँ !'वह बोली, 'मैंने उन्हें पिन-कुशन में भरने के लिए फाड़ दिया।'
'क्या,'माँ चीखी, 'इसी वक्त सीधे खाने के कमरे में आओ।' और उसे वहाँ लाया गया, जहाँ पापा हाथ पीछे किए चहलक़दमी कर रहे थे।
'अच्छा?’ उन्होंने गुस्से में कहा।
माँ ने सारी बातें बताई।
वे रुके ओर उसकी तरफ़ देखा। 'क्या! तुमने ये किया?'
'न-न-नहीं।’ वह डरते-डरते बोली। 'मां, इसके कमरे में जाओ और जरा उस बर्बाद चीज को खोजो और इसे इसी वक्त बिस्तर पर डाल दो।'
वह कुछ नहीं बता सकी और कमरे में पड़ी सुबकती रही। शाम की रोशनी को फर्श पर आड़े-तिरछे नमूने बनाती देखती रही। पापा कमरे में आए, हाथ में एक छड़ी के साथ।
तुम्हें इसकी सजा मिलनी चाहिए,' वे बोले।
'ओह, नहीं-नहीं।' वह चिल्लाई और चादर में छुप गई। उन्होंने चादर हटा दी।
'उठकर बैठो और हाथ निकालो। तुम्हें एक बार यह जरूर सिखाया जाना चाहिए कि दूसरों की चीजों को हाथ नहीं लगाते हैं।'
'लेकिन यह आपके ज-ज-जन्मदिन के लिए था।'
छोटी, गुलाबी हथेली पर तड़ाक से छड़ी पड़ी।
घंटों बाद जब दादी ने उसे शॉल में लपेटा और कुर्सी पर झुलाने लगीं तब वह उनकी नर्म देह से लिपट गई।
'ईश्वर ने पिताओं को क्यों बनाया?' वह सुबक रही थी।
'लो बेटा, यह रूमाल और अपनी नाक साफ़ कर लो। सो जाओ, बच्ची। सुबह तक तुम इसके बारे में सबकुछ भूल जाओगी। मैंने पापा को समझा दिया है, लेकिन वे बहुत नाराज थे।'
लेकिन केजिया कभी नहीं भूली। अगली बार पापा को देखते ही उसके गाल सुर्ख हो गए और उसने दोनों हाथ पीछे छिपा लिए।मैकडॉनल्ड्स उनके पड़ोसी थे। उनके पाँच बच्चे थे। बाड़ के छेद से झाँककर उसने देखा कि वे लोग ‘टैग’ खेल रहे थे। छोटा माओ उनके कंधों पर और दोनों लड़कियाँ उनके कोट की जेब में हाथ डाले फूलों के बीच दौड़ रही थीं, हँसते-हँसते दुहरे होकर। एक बार उसने देखा कि लड़कों ने हौजपाइप उनकी तरफ़ कर दी और वह हँसते हुए उन्हें पकड़ने दौड़ते रहे।
तब उसने सोचा कि दुनिया में कई तरह के पापा होते हैं। अचानक एक दिन माँ बीमार पड़ गई। माँ के साथ दादी अस्पताल चली गईं और वह बावर्चिन एलिस के साथ घर में अकेली रह गई। दिन में सबकुछ ठीक रहा, लेकिन रात में जब एलिस उसे बिस्तर में लिटाने लगी तो वह अचानक डर गई। ''मैं क्या करूँगी, अगर मुझे डरावने सपने आए,' उसने पूछा। ''मैं अक्सर बुरे सपने देखती हूँ। तब दादी मुझे अपने बिस्तर पर ले जाती हैं। मैं अँधेरे में नहीं रह सकती, सबकुछ डरावना लगता है...''
'तुम बस सो जाओ, केजिया' एलिस उसके मोजे खोलती हुई बोली, 'और चीखकर अपने बेचारे पापा को मत जगाना।'
लेकिन वही पुराना सपना आया- वो कसाई, छुरी और रस्सी लेकर पास, और पास आता जा रहा था। ओह, कितनी डरावनी हँसी थी उसकी। वह जरा भी हिल-डुल नहीं पा रही थी। सिर्फ़ चिल्ला रही थी 'दादी माँ, दादी माँ।' वह थरथराती हुई उठ गई।
पापा बिस्तर के सामने मोमबत्ती लेकर खड़े थे।
'क्या हुआ?'
'ओह, कसाई-छुरी -- मुझे दादी चाहिए।'
उन्होंने मोमबत्ती बुझा दी, झुके, केजिया को गोद में उठाया और अपने कमरे में ले आए। अख़बार बिस्तर पर पड़ा था -- एक अधपिया सिगार टेबललैंप के पास रखा था। उन्होंने अख़बार हटा दिया। सिगार को फायरप्लेस में फेंककर केजिया को बिस्तर पर लिटा दिया और खुद उसकी बगल में लेट गए। अधसोयी केजिया, कसाई की डरावनी हँसी याद करती, उनके क़रीब चली आई। अपना सिर उनकी बाँह के नीचे घुसा दिया और उनकी कमीज पकड़ ली।
अब अँधेरे से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। वह स्थिर लेटी रही। अपने पैर मेरे पैर पर रगड़कर गर्म कर लो,’ पापा बोले।
थके हुए वे केजिया के पहले सो गए। वह सोच रही थी- बेचारे पापा, आखिर उतने बड़े तो नहीं हैं- कोई भी उनकी देखभाल के लिए नहीं है। वे दादी से कठोर हैं, लेकिन वह अच्छी लगती हैं। और रोज पापा कितना काम करते हैं। मिस्टर मैकडॉनल्ड जैसा होने के लिए काफ़ी थके होते हैं। उसने उनकी सारी सुंदर लिखावट फाड़ दी... अचानक वह हिली-डुली और एक उसाँस ली।
'क्या हुआ?' वे पूछ रहे थे, 'कोई और सपना?'
'ओह, वह बोली, 'मेरा सिर आपके सीने पर है और मैं इसकी धड़कन सुन रही हूँ। कितना बड़ा दिल है आपका, प्यारे पापा।'