गुरुवार, 14 नवंबर 2024
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Written By WD

लघुकथा : आस्था

लघुकथा : आस्था - Short Story
श्रुत‍ि नेमा 'नूतन' 
दोपहर के लगभग 3 बजे थे। रेलगाड़ी अपनी रफ़्तार से मंजि‍ल की तरफ बढ़ी जा रही थी। यात्रियों का शोर गाड़ी की बोगी में गूंज रहा था। कोई राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप में उलझा था तो कोई परनिंदा करने में व्यस्त था। उन्हीं आवाजों के बीच 10-11 साल का एक बच्चा- 'एक रुपया दे दो बाबूजी।' 'एक रुपया दे दो मांजी।' की रट लगाए हुए था।



उसका करुण स्वर लोगों के कानों से उनके दिल के अंदर उतरना चाह रहा था। वो बताना चाह रहा था कि राजनीति और परनिंदा से दूर हमारी दुनिया भी है। मगर अपने ही शोरगुल में लगे लोग उसको अनसुना करने में कई हद तक सफल भी हो चुके थे। 
         
अब वो सबके पैर पकड़-पकड़ कर एक रुपया देने की गुहार लगा रहा था। वो कह रहा था- 'बाबूजी भूख लगी है, कुछ खाने ही दे दो।' पर लोग उसे दुत्कार रहे थे। उसके फटे-चिथे कपड़ों पर हंस रहे थे। इसी बीच रेलगाड़ी की रफ्तार धीमी हो गई थी। नर्मदा नदी का पुल आ गया था।

आस्था में डूबे आस्थावान लोगों ने बिना देर किये अपने-अपने जेबों से सिक्के निकाले और नर्मदा में डाल दिए। वहीं पास खड़े लड़के की आंखों मे आंसू आ गए और नर्मदा में डुबकी लगा रहा सिक्का अपनी किस्मत पर रो पड़ा।
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