मीडिया ने स्त्री को बिकाऊ बनाया है
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मन्नू भंडारी से प्रभु जोशी की बातचीत (इंदौर में आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक मेले में मंच पर)प्रश्न : आप दिल्ली में मिरांडा कॉलेज में पढ़ाती थीं। आपको पी़ढियों के वैचारिक बदलाव को करीब से महसूस करने का अवसर मिला होगा। आप क्या इससे सहमत हैं कि पहले की कहानी में जो स्त्री आती थी वह काफी बदली हुई है। आज जो स्त्री आ रही है वह धड़धड़ाती हुई स्त्री है। उसके पास पीछे मुड़ कर देखने को कुछ नहीं है। उत्तर : एक दौर वह था जब भारतीय स्त्री का रिश्तों के परे कोई अस्तिव न था। वह समाज में महज मां, ताई, बहन, बेटी, मामी, दादी थी। मैं 71 की हूं। मेरी पीढ़ी ने जो संघर्ष किया वह पहचान बनाने का था। हमने रिश्तों के परे अपनी एक पहचान बनाई। आज की पीढ़ी अपनी व्यक्तित्व बना रही है।आज जो धड़धड़ाती हुई स्त्री हमारे सामने आ रही है, उसमें हमारी पीढ़ी की अपेक्षा आत्मविश्वास ज्यादा है। उसके यहां संस्कार का वह संकट नहीं है जो हमारी पीढ़ी के सामने था। हमारी पीढ़ी एक ओर विचारों से आधुनिक थी तो दूसरी ओर वह संस्कारों से भी मुक्त नहीं थी।प्रश्न : आपने पी़ढियों के इस अंतर को कहानियों में व्यक्त किया है?उत्तर : मैंने इसी द्वंद्व को अपनी कहानी 'त्रिशंकु' का विषय बनाया है। नई पीढ़ी में कुछ ऐसी भी हैं, जिन्होंने पश्चिम की फेमिनिस्ट विचारधारा उधार ली है। उन्हें परिवार नहीं चाहिए। बधो नहीं चाहिए। लेकिन मेरी यह निजी और स्पष्ट मान्यता है कि भारतीय स्त्री परिवार निरपेक्ष नहीं, परिवार के साथ रहना चाहती है और रहना चाहिए। लेकिन उसे अपने हर निर्णय का अधिकार चाहिए। उसे अपनी पढ़ाई, अपना कैरियर चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।प्रश्न : जिस तरह के बदलाव के लक्षण इधर की महिला कथाकरों में भी दिखाई दे रहे हैं उनसे आप कहां तक सहमत हैं। मसलन लवलीन, जया जादवानी और गीतांजलिश्री आदि की कहानियों की स्त्री नैतिकता के प्रश्नों से परेशान नहीं है। उसे विवाहेत्तर संबंधों से परहेज नहीं है।उत्तर : बाहर की वैचारिक फसल भारतीय जमीन पर नहीं उगेगी। स्त्री के आंदोलन का यह स्वरूप भारतीय परिप्रेक्ष्य में स्वीकार्य न होगा। फिर इस तरह के प्रश्नों से साधारण स्त्री नहीं जुड़ी है। हां एक खास वर्ग अवश्य है। दरअसल हमारे समाज में एक साथ कई सदियों के लोग रहते हैं। आपका आजे 19 वीं सदी का युवक भी मिल जाएगा। फिर भी आज की पीढ़ी मुक्त है। मैं आज नई पीढ़ी की लेखिकाओं को निजी तौर परजानती हूं, जो नैतिकता के प्रश्नों से परेशान नहीं हैं। ना ही वे हर संबंध को विवाह से जोड़ना चाहती हैं, लेकिन ऐसी महिलाएं गिनी चुनी हैं। दरअसल मैं मानती हूं कि अधिकांश भारतीय महिला संस्कारों से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकती। दरअसल संस्कार और आधुनिकता की चाल दो कदम आगे एक कदम पीछे की रहती है।उन्होंने कहा कि खुद मेरी बेटी अपने पहनावे पर टिप्पणी के जवाब में कहती है कि तुम कभी पहनावे से उबर पाओगी कि नहीं।प्रश्न : टीवी ने खजुराहो और सीता वाली भारतीय स्त्री के बनिस्बत पेंसिल फीगर वाली आधुनिक स्त्री को खड़ा किया है, लेकिन उसमें अंतरविरोध है। वह अनचाहे गर्भधारण पर अकेले में रोती भी है। इसके क्या कारण है?उत्तर : स्त्री का नैतिकता बोध कभी कभी उसे आधुनिकता के बावजूद सताता है। मैं इतना अनैतिक होकर नहीं सोच पाती हूं। मेरी कहानियों में ऐसे पात्र हैं, जो कभी अपने संस्कारों से उबर पाते हैं तो कभी टूट जाते हैं।प्रश्न : स्त्री के आधुनिक होने से सामाजिक समस्याओं में इजाफा हुआ है, इसके बारे में आप क्या सोचती हैं?उत्तर : स्त्री के नए व्यक्तित्व के कारण उपजी समस्याओं से तलाक बढ़ रहे हैं। तलाक की समस्या पर मैंने 'आपका बंटी' उपन्यास लिखा था जिस पर फिल्म भी बनी। हालांकि यह फिल्म इतनी खराब बनी कि उन्होंने उस मुकदमा कर दिया था। असली कारण यह है कि पुरुष वर्ग अपने सामंती संस्कारों से बाज नहीं आता। उसे स्त्री के नए व्यक्तित्व से समझौता करना होगा। पुरुष स्त्री को निर्णय के अधिकार से वंचित करेगा और वांछित सहयोग नहीं देगा तो तलाक की समस्या से नहीं बचा जा सकता।प्रश्न : मीडिया ने स्त्री के चरित्र को बदला है, इस पर आपकी प्रतिक्रिया?उत्तर : मीडिया ने स्त्री को बिकाऊ बना दिया है। विज्ञापनों में मोबाइल फोन की बगल में खड़ी अर्धनग्र लड़की की उपस्थिति के क्या माने हैं? मेरा स्त्री के पहनावे के प्रति रोष नहीं है, रोष इस बात पर है कि मीडिया ने वस्तु को बेचने के लिए स्त्री का सहारा लिया है। स्त्री को बिकाऊ बनाया है। मीडिया ने स्त्री मैं यह मानसिकता पैदा की है कि स्त्री का शरीर ही उसकी शक्ति है और इस स्त्री ने अपनी शक्ति पहचान ली है। जबकि स्त्री को बाजार के विरुद्ध खड़ा होने की आवश्यकता है। उसे अपना मनचाहा उपयोग नहीं करने देना चाहिए।प्रश्नः आप अपनी कहानी के विषय कहां से चुनती हैं?उत्तर : मैं वास्तविक घटनाओं पर ही कहानियां लिखती रही हूं, लेकिन यह घटनाएं आप बीती नहीं हैं। अरअसल किसी भी लेखक को परकाया प्रवेश का हुनर मालूम होना चाहिए। उसके बगैर वह लेखक नहीं हो सकता। उसे लिखने के पहले दूसरे के भीतर प्रवेश करने और दूसरे की जिन्दगी जीने की कला मालूम होनी चाहिए।'आपका बंटी' एक बधो की अनुभूतियों को महसूस कर लिखा गया उपन्यास है।