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Written By WD

समझा था आकाश जिसे वो

समझा था आकाश जिसे वो -
- मधुर नज्मी
NDND
झरना निकला पर्वत निकला सागर निकला
हर लम्हे की आँखों से क्या मंज़र निकला

क़दमों की आहट सुनकर दिल ने दोहराया
बरसों बाद जहाँ से कोई मुसाफिर निकला

ना दरवाजा ना दीवारें ना छत कोई
वो मलबों का ढेर तो मेरा ही घर निकला

साँसों की हल्की टक्कर से बिखर गया है
क्या बतलाऊँ जीवन कैसा जर्जर निकला

ना पूछो क्या मेरे दिल पर गुज़री साहिल
समझा था आकाश जिसे वो पिंजर निकला ।


साभार:प्रयास