रामधारीसिंह 'दिनकर' की कविता : पुनर्जन्म
जन्म लेकर दुबारा न जनमो,तो भीतर की कोठरी काली रहती है।कागज चाहे जितना भीचिकना लगाओ,जिन्दगी की किताबखाली की खाली रहती है।शुक्र है कि इसी जीवन मेंमैं अनेक बार जनमाऔर अनेक बार मरा हूं।तब भी अगर मैंताजा और हरा हूं,तो कारण इसका यह हैकि मेरे हृदय मेंराम की खींची हुईअमृत की रेखा है। मैंने हरियाली पी है,पहाड़ों की गरिमा काध्यान किया है,बच्चे मुझे प्यारे रहे हैंऔर वामाओं ने राह चलते हुएमुझे प्रेम से देखा है।पर्वत को देखते-देखतेआदमी का नया जन्म होता है।और तट पर खड़े ध्यानी कोसमुद्र नवजीवन देने में समर्थ है।नर और नारीजब एक-दूसरे की दृष्टि मेंसमाते हैं,उनका नया जन्म होता है।पुनर्जन्म प्रेम का पहला अर्थ है।पुनर्जन्म चाहे जितनी बार हो,हमेशा जीवित रहने सेहमें डरना भी चाहिए।दोस्ती, बंधन और लगाव की भीसीमा होती है।अपने अतीत के प्रतिहर रोज हमें थोड़ामरना भी चाहिए।