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Written By WD

किससे माँगें अपनी पहचान

दीपा जोशी

पहचान
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हीय में उपजी,
पलकों में पली,
न‌क्षत्र सी आँखों के
अम्बर में सजी,
पल‍‍‍ ‍‍‍‍‍दो पल
पलक दोलों में झूल,
कपोलों में गई जो ढुलक,
मूक, परिचयहीन
वेदना नादान,
किससे माँगे अपनी पहचान।

नभ से बिछुड़ी,
धरा पर आ गिरी,
अनजान डगर पर
जो निकली,
पल दो पल
पुष्प दल पर सजी,
अनिल के चल पंखों के साथ
रज में जा मिली,
निस्तेज, प्राणहीन
ओस की बूँद नादान,
किससे माँगे अपनी पहचान।

सागर का प्रणय लास,
बेसुध वापिका
लगी करने नभ से बात,
पल दो पल
का वीचि विलास,
शमित शर ने
तोड़ा तभी प्रमाद,
मौन, अस्तित्वहीन
लहर नादान,
किससे माँगे अपनी पहचान

सृष्टि ! कहो कैसा यह विधान
देकर एक ही आदि अंत की साँस
तुच्छ किए जो नादान
किससे माँगे अपनी पहचान।

साभार : स्वर्ग विभा