एक मौसम यहाँ बारिश का भी होता है
ग़ज़ल
ज्ञानप्रकाश विवेक मेरी औकात का ऐ दोस्त शगूफा न बनाकृष्ण बनता है तो बन, मुझको सुदामा न बनावर्दियों की तरह निकला है पहनकर इनको,अपने जख्मों का तू इस कदर तमाशा न बनाकोई चिट्ठी, न परिंदा न दरों पर दस्तक,मेरे भगवान, मुझे इतना अकेला न बनाये न हो कि तू किसी पत्थर में बदल जाएइतना गहरा किसी दीवार से रिश्ता न बनाएक मौसम यहाँ बारिश का भी होता है 'विवेक'अपना गत्ते का मकाँ इतना भी अच्छा न बना।