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वात्सल्यमयी मां पर कविता : सोचो गर मां न होती...

वात्सल्यमयी मां पर कविता : सोचो गर मां न होती... - poem on mother
* नारी के अस्तित्व बताती हिन्दी कविता 


 
मां न होती तो इस धरा का विस्तार न होता।
मां न होती तो सृष्टि का सरोकार न होता।
मां न होती तो स्नेह का आंचल न होता।
मां न होती तो वात्सल्य का बादल न होता।
मां न होती तो चलना कौन सिखाता।
मां न होती तो लपक गोदी कौन उठाता।
मां न होती तो न शिक्षा न संस्कार होते।
मां न होती तो जगत के व्यवहार न होते।
मां न होती तो ये धड़कता दिल न होता।
मां न होती तो हमारा सुनहरा कल न होता।
मां न होती तो हौसलें हम हार जाते।
मां न होती तो भमों से कैसे पार पाते।
मां न होती तो बद वक्त कैसे निकलता।
मां न होती तो कठिन संघर्ष कैसे टलता।
मां न होती तो दुआएं कौन देता।
मां न होती तो बलाएं कौन लेता।
मां न होती तो हर पल कहर था।
मां न होती तो ये जीवन जहर था।
मां न होती तो सूरज कैसे निकलता।
मां न होती तो चांद कैसे ढलता।
मां न होती तो जीवन का अंकुरण न होता।
मां न होती तो चेतना का संचरण न होता।
मां न होती तो क्या सीमा पर वीर होते।
मां न होती तो क्या सैनिक रणधीर होते है।
मां न होती तो न ये फूल होते न लताएं।
मां न होती तो व्यर्थ होती ये वीथिकाएं।
मां न होती तो न बहन होती न भाई होते।
मां न होती तो सभी रिश्ते सड़कों पे रोते।
मां न होती तो तो न कृष्ण होते न राम होते।
मां न होती तो न ये धर्म तीरथ धाम होते
मां न होती तो न कोई पैगम्बर न भगवान होते।
मां न होती तो बुत से बेजान सभी इन्सान होते।
मां न होती तो ये मौत ‍सर पे सोती।
मां न होती तो ये पीर पर्वत-सी होती।

 
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