कविता : इंसां झूठे होते हैं...
- डॉ. रूपेश जैन 'राहत', हैदराबाद
इंसां झूठे होते हैं
इंसां का दर्द झूठा नहीं होता,
इन ओंठों पर भी हंसी होती
गर अपना कोई रूठा नहीं होता।
मैं जानता हूं कि
आंखों में बसे रुख को
मिटाया नहीं जाता,
यादों में समाये अपनों को
भुलाया नहीं जाता।
रह-रहकर याद आती है अपनों की
ये गम छुपाया नहीं जाता,
सपनों में डूबी पलकों की कतारों को
यूं उठाया नहीं जाता।
इंसां झूठे होते हैं
इंसां का दर्द झूठा नहीं होता,
इन ओंठो पर भी हंसी होती
गर अपना कोई रूठा नहीं होता।