शनिवार, 20 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. Poem
Written By WD

सामाज पर कविता : तीसरी मानसिकता

सामाज पर कविता : तीसरी मानसिकता - Poem
गीतिका नेमा  
कुछ लोग जो समाज में
कुंठाओं और कुरीतियों को मिटाकर
लाना चाहते हैं सामाजिक समरसता और समानता।
 
कर रहे हैं कार्य बिना थके,
हर पल पहल करने को अग्रसर।
करना चाहते हैं महिलाओं का उत्थान भी 
पर ये क्या...?
 
स्वयं की कुंठाओं और कुरीतियों को छुपाकर,
अपनी बहन-बेटियों को पर्दे में रख
समाज की लड़कियों को
घुमाना चाहते हैं पब,डिस्को और न जाने कहां-कहां
कराना चाहते हैं नाच-गाना 
ठेकेदार बन समाज के
टूटे से सामाजिक मंच पर।
बनना चाहते हैं समाज सुधारक
 
लेना चाहते हैं विचारक होने का श्रेय,
पर न तो वे राजा राममोहन राय 
के वंशज हैं और न ही उनके परिवार में
ऐसा कुछ चला आया है।
 
बस वे बताना चाहते हैं स्वयं को महान
जिससे छुपा सकें अपना दो-मुंहा चेहरा
और दोहरे-तिगुने चरित्र।
 
बताना चाहूंगी, मैं पक्षधर नहीं 
पित्तसत्तात्मक समाज की
और न ही ऐसी घृणित
मानसिकता की।
 
मुझे घर-परिवार में मिले है स्वतंत्रता,
समानता के अधिकार भी।
लेकिन बात है उन लड़कियों की
जो बहकावे में है उनके 
 
जिन्हें नहीं है अपनी ही परवरिश पर भरोसा
तभी तो बांधे रहना चाहते हैं 
घर पर ही, 
अपनी बहन-बेटियों को,
 
पर हां, वे तटस्थ हैं तो
समाज की दूसरी लड़कियों के प्रति।
उन्होनें पढ़ाया तो है 
अपनी लड़कियों..बहन-बेटियों को
 
डॉक्टरी, इंजीनियरी व वकीली तक
करवाई है एमबीए, एमएससी व
एमए जैसी मास्टर डिग्रीयां
लेकिन उन्हें उनके पैरों पर खड़ा होने नहीं 
 
बल्कि इसलिए कि कल
ससुराल में न उठें उनकी तरफ उंगलियां।
वे बेटी से नहीं करा सकते नौकरी 
न दूर भेजना चाहते हैं,अपनी नुकीली नजरों से
 
बस उन्हें घर बैठाकर 
समाज की लड़कियों के लिए 
चौराहों पर करते हैं उत्थान की बातें
 
पर क्या हुआ..? 
इन खोखली बातों में उलझकर
समाज ने बना दिया इन्हें समाज सुधारक।
क्यों नहीं उठाता कोई प्रश्न 
इस तीसरी मानसिकता पर भी..?
ये भी पढ़ें
पद्म पुरस्कारों की बंदरबांट