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Written By WD

प्रेम कविता: इंद्रधनुष

poem
निशा माथुर   
मेरी तिरछी-तिरछी चितवन में, 
कितने बिखरे हैं इंद्रधनुष
आज कुछ ऐसी बात करो, अपने प्यार का रंग मिलाकर,
पिया जी, मेरा हार करो, श्रंगार करो
आज कुछ ऐसी बात करो 
 
दो नयनों के नीले तरूवर में, आस-निराशा के गहरे सागर में,
नजरों से मुझ को प्यार करो, फिर कुछ भूली, कुछ याद करो
प्रि‍यतम रंगों की बरसात करो,आज कुछ ऐसी बात करो..
 
लिख दो मेरे गुलाबी अधरों पे, एक काव्य सृजना इस जीवन की
फिर तुम,तुम ना रहो, मैं, मैं ना रहूं, ऐसा मिलकर शब्दार्थ करो,
पिया जी, नखशि‍ख तक हरसिंगार करो,
आज कुछ ऐसी बात करो
 
माथे की लाल चमकती बिंदिया से, अपने विश्वासों का सौपान करो,
सूरज सा दमकता तेज लिए, गहरी पीड़ाओं का दान करो,
प्रि‍यतम, मेरे सिंदूर का मान करो , आज कुछ ऐसी बात करो
 
चांदी-सी चमकती रूनझुन पायल में, उम्मीदों के स्वेद सुखद सवेरे हैं,
देखो, कान्हा की मुरली में जैसे, मन भरमाती मीठी रागों के फेरे हैं, 
पिया जी, मेरी धड़कन का आभास करो, आज कुछ ऐसी बात करो
 
जुल्फ घनेरी-श्याम सलोनी अलको में, सावन का बहकता आवारा बादल है,
अल्हड़पन, चंचल मन से उड़ता, भीनी खूशबू से लिपटा आंचल है
अपनी तन्हाई मे अब दो पल तो विश्राम करो, आज कुछ ऐसी बात करो
 
इक बंधन है रंग बिंरगी चूड़ी में, जलतरंग सा जादू बिखरी रंगत है,
कुछ नाजुक-सी, पर अनमोल, भोली-सी, अल्फाजों में तुझे बयां करती मेरी हसरत है
सजन जी, इसकी खनखन का अहसास करो, आज कुछ ऐसी बात करो
 
अपने प्यार का रंग मिलाकर,
पिया जी, मेरा हार करो, श्रंगार करो ।