होली की कविता: वो होली कोई लौटा दो
बिसरी सी होली मेरी
वापिस कोई लौटा दो
वो मस्ती अबीर गुलाल
वापिस कोई लौटा दो
सज गए बाजार
चीनी पिचकारी से
केमिकल से भरी हुई
रंगीन सी क्यारी से
पर इनमें टेसू वाली
चमक कहां से लाऊं मैं
रंगों की धार में वो
गमक कहां से लाऊं मैं
अपनों का प्यार दुलार
वापिस कोई लौटा दो
वो मस्ती अबीर गुलाल
वापिस कोई लौटा दो
मनती तो होली
यहां भी सोसायटी में
मिलते हैं सारे
एक दूसरे से हाई टी में
पकवान होली के
बनकर यहां भी आएंगे
रेडीमेड गुझिया हम
सब यहां भी खाएंगे
अम्मां की गुझिया
और कचौड़ी कोई लौटा दो
वो मस्ती अबीर गुलाल
वापिस कोई लौटा दो
नकली मुस्कानों को
ओढ़े रंग लगाते हैं
उथले रिश्तों सब
गहरापन जतलाते हैं
वो मोहल्ले वाली
चहक कहां से लाऊं मैं
ठंडाई दही बड़े की
महक कहां से लाऊं मैं
भाभी की गालियों वाली
होली कोई लौटा दो
वो मस्ती अबीर गुलाल
वापिस कोई लौटा दो
तृप्ति मिश्रापरिचय: समकालीन साहित्यकारों में सामाजिक विडम्बनाओं को उजागर करती लेखनी के लिए जानी जाने वाली, महू मध्यप्रदेश की लेखिका एवं कवियित्री तृप्ति मिश्रा साहित्य के साथ लोकगायन को भी संरक्षित कर रही हैं। साथ ही 17 से अधिक वर्षों से मिट्टी के गणेश पर निःशुल्क कार्यशालाएं करती आई हैं। अपने कार्यों के लिए इन्होंने अनेक सम्मान प्राप्त किए हैं।