गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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नदी पर सुंदर कविता : बहती होगी कहीं तो वह नदी !

नदी पर सुंदर कविता : बहती होगी कहीं तो वह नदी ! - River Poem in Hindi
कहीं तो रहती होगी वह नदी !
बह रही होगी चुपचाप
छा जाते होंगे ओस भरे बादल
जिसकी कोमल त्वचाओं पर
आते होंगे पक्षी, लांघते हुए
देश, समुद्र और पहाड़ हजार
चुगने बूंदें उसकी मोतियों वाली !
 
कहीं तो बहती होगी वह नदी !
खोजी नहीं जा सकी है जो अभी
डूबी भी नहीं है जो पानी में !
पर लगता है डर यह भी बहुत
बच नहीं पाएगी अब वह नदी
बहती हुई चुपचाप इसी तरह
कर रहा है तलाश उसकी
खारे पानी का समुद्र
भांजते हुए नंगी तलवारें अपनी
निगल जाने के लिए उसे !
 
जरूरी हो गया है बहुत
बचाए रखना उस नदी को
जन्मी हैं सभ्यताएं सारी
कोख से किनारों के उसके
झूली हैं पालना
सुरम्य घाटियों में उसकी !
समुद्र तो ले जाता है
सभ्यताओं को परदेस
करता है आमंत्रित
लुटेरों को
करने के लिए राज, व्यापार
बनाने के लिए बंदी
जुबानों, आत्माओं को !
 
रखना होगी नजर अब रात-दिन
नहीं कर पाए उपवास
एक भी बूंद नदी की
सूख जाए नहीं चिंता में वह
निगल लिए जाने के डर से !
 
बोलना ही पड़ेगा कभी तो
पक्ष में उसके
बह रहा है जो नदियों की तरह
नहीं रह सकते हैं चुपचाप सभी
किनारों पर खड़े
बड़े-बड़े पहाड़ों की तरह !