गुरुवार, 3 अप्रैल 2025
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कविता : मधुमास

मधुमास
है आसपास,
स्वप्निल गुंजित मधुमास।
 
तुंग हिमालय के स्वर्णाभ शिखर,
अरुणिम आभा चहुंओर बिखर।
 
नव्य जीवन का रजत प्रसार,
मधुकर-सा गुंजित अपार।
 
सुरभित मलयज मंद पवन,
नील निर्मल शुभ्र गगन।
 
मृदु अधरों पर मधु आमंत्रण,
नयनों का है नेह निमंत्रण।
 
बासंती सोलह सिंगार,
सतरंगी फूलों की बहार।
 
पीत पुष्प आखर से,
उपवन हैं बाखर से।
 
शतदल खिली कमलिनी,
गंधित रसवंती कामिनी।
 
कंपित अधरों का मकरंद,
किसलय कंपित मन के छंद।
 
मंजरियों में बौराई आमों की गंध,
अभिसारी गीतों में प्रेम के आबंध।