कविता : सुकोमल नन्हा गुलाबी हाथ
बहुत कुछ टूटता,
बिखरता और छिन्न-भिन्न हो जाता है
जब कोई संभावना
भीतर तक आकार ले रही होती है
और अचानक चूर-चूर हो जाती है... किरचों-किरचों में....
किलकारी क्रंदन बन जाती है
और आत्मा का उत्साह आर्तनाद...
एक सुकोमल नन्हा गुलाबी हाथ,
हाथ में आने से पहले ही छुड़ा लेता है हाथ
और खाली हाथ में रह जाती है
एक कसकती याद...