कविता: कोई अमृता साहिर पर नहीं मर मिटती...
अमृता प्रीतम - जन्मदिवस पर
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मुहब्बतों की कितनी
कहानियां.....
कितने अफसाने
कहता है ज़माना
कहीं कोई हीर थी
था कहीं कोई रांझा
थी एक राधा
था उसका कृष्ण कन्हैया
कोई सोहनी
कहीं कोई महिवाल
कहीं कोई लैला
कहीं कोई मजनूं
कहीं कोई अमृता
कहीं कोई साहिर
और
कहीं कोई इमरोज़......
सब इतिहास की तरह
ज़माने के सामने हैं
पर
इस ज़माने के पास
मुहब्बत के
ऐसे पाक रिश्ते कहां हैं?
रूह में रचने बसने वाले
वैसे ज़ज्बात आज कहां हैं ??
जान लुटाकर किसी से
मुहब्बत अब कोई नहीं करता
कोई अमृता साहिर पर नहीं
मर मिटती....
कोई इमरोज़ अमृता पर
जान नहीं लुटाता....
मुहब्बत के मानी
बहुत बदल गये हैं दोस्तों
इस सदी में कोई किसी से
इतनी पाक मुहब्बत
नहीं करता
नहीं करता
नहीं करता......