मूर्ख दिवस पर कविता : अप्रैल फूल डे पर कढ़ी महात्म्य!
बहुत जुगत लिया लगाय
पर सूझे न कोई उपाय
तीव्रमती पड़ोसन को
कैसे बनाया मूरख जाय
सहसा बुद्धि में द्रुत गति से
एक सितारा चमका
और मूर्ख बनाने का
अद्भुत आइडिया आ धमका
त्वरित वेग से
उसे मैंने लिया लपक
उस सौन्दर्यमती को
कढ़ी का था शौक़
उसी दम गैस जलाकर
पतीला पानी का चढ़ाया
उबाल आते तनिक
हल्दी को उसमें दौड़ाया
फिर पतीले में भरकर
पड़ोसन को कढ़ी बता
घर फौरन उसके पहुंचाया
उधर वो भात बना कर
डाइनिंग टेबल पर
कर रहीं थीं इंतज़ार
आये कढ़ी तो
भोजन करे परिवार
मन में उफन रहे थे
चटपटे सुस्वादु विचार
समाप्त हुई प्रतीक्षा
हाथ में गर्म पतीला आया
चावल परस उन्होंने
ढक्कन ज्यों हटाया
अप्रैल फूल का पर्चा
पानी पर तैरता पाया
अपनी मूर्खता पर उन्हें
सहज हंसी संग
मुख पर पसीना आया
ऐसे मैंने उस वर्ष