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Written By स्मृति आदित्य

कुँवारा रेशम

फाल्गुनी

फाल्गुनी
मेरे मन की
कच्ची किनारियों पर
अब भी टँका है
तुम्हारी नजरों के
स्पर्श का
लटकन सितारा
झरा दो उसे,
कहीं से आकर
या उखाड़ दो,
क्योंकि उसकी
कसैली चमक से ज्यादा
प्यारी है मुझे अपनी सादी चुनरी
जिसके छोर में आज भी
कुँवारा रेशम गूँथा है।
अब समझी हूँ ‍कि
ुभ रहा है जो
वह तुम्हारी नजर का
कोमल सितारा था
जिस पर कभी
मैंने ही
रूपहले सपनों को वारा था।