हरी चूड़ियाँ और पहाड़ी चिड़िया
फाल्गुनी
मेरे चेहरे पर है सूर्य की रोशनी और सामने काली पहाड़ी चिड़ियाउदास सी बैठी हैक्या मुझे तुम्हें याद करना चाहिए? बहुत बार मैंने चाहा अपनी ही उलझनों के जंगल से निकलना पर बहुत बार मुझे याद आई तुम्हारी एक बात कि बिना चूड़ी के हाथ मुझे पसंद नहीं। आज भी मैं बाजार के उस कोने में ठिठक जाती हूँ जहाँ काँच की सजी ढेर सारी रंगीन चूड़ियों में से तुम अपनी तर्जनी से हरी चूड़ियों को स्पर्श करते हुए निकल गए थे।मुझे लगा जैसे सारी हरी चूड़ियाँ एक साथ एक गुलाबी पुलक से मुस्कुरा उठी थी। आज जब चेहरे पर सूर्य की रोशनी का झीना आँचल लहरा रहा है, मुझे फिर याद आ रही है तुम्हारी एक बात, बहारों के सौन्दर्य का नारंगी प्रतिबिंबदिखता है मुझे तुम्हारे चेहरे पर तुम एक पहाड़ी चिड़िया हो... ओह! हरी चूड़ियाँ पहन ली आज तुमने। अब तुम्हीं बताओ, क्या मुझे तुम्हें 'याद' करना चाहिए? जबकि तुम वहाँ हो जहाँ एक दिन हम सबको जाना है। और वापस कभी नहीं आना है।