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विश्व पुस्तक मेला : हिन्दी लेखक मंच में विशेष परिचर्चा का आयोजन

विश्व पुस्तक मेला : हिन्दी लेखक मंच में विशेष परिचर्चा का आयोजन - Vani Prakashan Hindi
* अपना सत्य, अपना उपन्यास : 21वीं सदी में साहित्य के सामाजिक सरोकार
 
विश्व पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन द्वारा 10 जनवरी 2018 को 'हिन्दी लेखक मंच' में 'अपना सत्य, अपना उपन्यास : 21वीं सदी में साहित्य के सामाजिक सरोकार' विषय पर एक विशेष परिचर्चा का आयोजन किया जा रहा है। परिचर्चा में शामिल होंगे- साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका नासिरा शर्मा, वरिष्ठ कथाकार व पत्रकार गीताश्री, उपन्यासकार बालेंदु द्विवेदी, चर्चित रचनाकार वीरेन्द्र सारंग, वरिष्ठ पत्रकार राकेश तिवारी व वरिष्ठ पत्रकार और कथाकार प्रदीप सौरभ।
 
 
नासिरा शर्मा
 
1948 में इलाहाबाद (उप्र) में जन्मीं नासिरा शर्मा को साहित्य के संस्कार विरासत में मिले। उन्होंने फ़ारसी भाषा साहित्य में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एमए किया।
 
हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेजी और पश्तो भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। वे ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य, कला और संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं। इराक़ अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान, सीरिया तथा भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ साक्षात्कार किए, जो बहुचर्चित हुए।
 
युद्धबंदियों पर जर्मन व फ्रांसीसी दूरदर्शन के लिए बनी फ़िल्म में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, साथ ही साथ स्वतंत्र पत्रकारिता में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके प्रकाशित उपन्यासों में बहिश्ते जहरा, शाल्मली, ठीकरे की मगनी, जिंदा मुहावरे, अक्षयवट, कुइयांजान, जीरो रोड, पारिजात, काग़ज की नाव, अजनबी जजीरा, शब्द पखेरू, दूसरी जन्नत आदि हैं।
 
कहानी संग्रह : शामी काग़ज, पत्थर गली, इब्ने मरियम, संगसार, सबीना के चालीस चोर, ख़ुदा की वापसी, दूसरा ताजमहल, इंसानी नस्ल, बुतख़ाना। रिपोर्ताज : जहां फौव्वारे लहू रोते हैं।

 
संस्मरण : यादों के गलियारे।
 
लेख संग्रह : किताब के बहाने, राष्ट्र और मुसलमान, औरत के लिए औरत, औरत की आवाज, औरत की दुनिया।
 
अनुवाद : शाहनामा-ए-फ़िरदौसी।
 
बाल साहित्य : भूतों का मैकडोनल, दिल्लू दीमक (उपन्यास), दर्द का रिश्ता, गुल्लू।
 
नवसाक्षरों के लिए : धन्यवाद-धन्यवाद, पढ़ने का हक़, गिल्लो बी, सच्ची सहेली, एक थी सुल्ताना।
 
टीवी फ़िल्म व सीरियल : तड़प, मां, काली मोहिनी, आया बसंत सखी, सेमल का दरख़्त (टेलीफ़िल्म), शाल्मली, दो बहनें, वापसी (सीरियल)।
 
शब्द पखेरू
 
बाजार और तकनीक के इस विकसित हो रहे माहौल में छोटी बेटी अपना मार्गदर्शक 'गूगल' को समझ लेती है और ग्रैंडपा के जरिए वह बेहतर दुनिया में सांस लेने की तमन्ना पाल लेती है। अपने परिवार को सुखमय जीवन देने की इच्छा में साइबर क्राइम में फंस जाती है। शब्दों के दग़ा देने पर वह अविश्वास के उस मरुस्थल में आन खड़ी होती है, जो शब्द पखेरू की तरह अपनी लहरों को पल-पल हवा में गुम कर देते हैं।

 
गीताश्री
 
गीताश्री कथाकार एवं पत्रकार हैं। उनकी प्रार्थना के बाहर और अन्य कहानियां, स्वप्न साजिश और स्त्री, औरत की बोली, स्त्री आकांक्षा के मानचित्र, सपनों की मंडी (आदिवासी लड़कियों की तस्करी पर आधारित शोध), डाउनलोड होते हैं सपने, देहराग (बैगा आदिवासियों के गोदना कला पर आधारित शोध पुस्तक वन्या प्रकाशन, हसीनाबाद और बाहों के दरमियां कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।

 
गीताश्री वर्ष 2008-09 में पत्रकारिता का सर्वोच्च पुरस्कार रामनाथ गोयनका, बेस्ट हिन्दी जर्नलिस्ट ऑफ द ईयर समेत अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं, इसके साथ ही राष्ट्रीय स्तर के 4 मीडिया फैलोशिप और उसके तहत विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों पर गहन शोध, कथा साहित्य के लिए इला त्रिवेणी सम्मान-2013, सृजन गाथा अंतरराष्ट्रीय सम्मान, भारतेंदु हरीशचन्द्र सम्मान, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए बिहार सरकार की तरफ से बिहार गौरव सम्मान-2015 जैसे सम्मानों से भी सम्मानित की जा चुकी हैं। 24 सालों तक सक्रिय पत्रकारिता के बाद फ़िलहाल वे स्वतंत्र पत्रकारिता और साहित्य लेखन में व्यस्त हैं।

 
हसीनाबाद ग्रामीण जीवन में प्राकृतिक सरसता और शहरी जीवन में उत्तर-आधुनिकता को अपनी रचनाओं में लगातार पेश कर हिन्दी जगत का ध्यान अपनी ओर खींचने वाली गीताश्री का पहला उपन्यास 'हसीनाबाद' ठेठ गंवई परिवेश से उठाया गया एक आधुनिक उपन्यास है। गीताश्री के इस उपन्यास 'हसीनाबाद' की केंद्रीय पात्र गोलमी को पढ़ते हुए पाठकों को सहानुभूति नहीं, बल्कि समयानुभूति होती है। गांवों की विपन्नता के बीच गोलमी जिस तरह से राजनीति के शिखर पर पहुंचती है, उस यात्रा में लोक अंचल की सांस्कृतिक संपन्नता को उसके तमाम अंतरविरोधों के साथ पेश कर उसको सार्थकता प्रदान कर देती है। 
 
'हसीनाबाद' में गोलमी का सपाट और एक रेखीय नहीं है बल्कि वो वक्ररेखीय है जिसमें गोलाइयों के अलावा उतार-चढ़ाव भी हैं, राजनीति के घुमावदार रास्ते हैं, तो प्रेम की कठिन डगर भी है, संवेदनाओं की उलझन भी हैं। कह सकते हैं कि गीताश्री का ये उपन्यास लोकजीवन की दयनीय महानता की दिलचस्प दास्तां है।
 
बालेंदु द्विवेदी
 
जन्म : 1 दिसंबर 1975 ; उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के ब्रह्मपुर गांव में, वहीं से प्रारंभिक शिक्षा ली। फिर कभी असहयोग आंदोलन के दौरान चर्चित रहे ऐतिहासिक स्थल चौरी-चौरा से माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की। तदनंतर उच्च शिक्षा हेतु इलाहाबाद गए, वहीं से स्नातक की शिक्षा और दर्शनशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की। बाद में हिन्दी साहित्य के प्रति अप्रतिम लगाव के चलते 'राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय' से हिन्दी साहित्य में भी एमए किया। जीवन के यथार्थ और कटु अनुभवों ने लेखन के लिए प्रेरित किया। सम्प्रति उप्र सरकार में जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के पद पर सेवारत।

 
मदारीपुर जंक्शन
 
'मदारीपुर जंक्शन' उपन्यास अपने ग्रामीण कलेवर में कथा के साथ विविध जाति-धर्मों के ठेकेदारों की चुटकी लेता और उनके पिछवाड़े में चिंगोटी काटता चलता है। वस्तुत: उपन्यास के कथानक के केंद्र में पूर्वी उत्तरप्रदेश का मदारीपुर जंक्शन नामक एक गांव है जिसमें एक ओर यदि मदारी मिजाज चरित्रों का बोलबाला है तो दूसरी ओर यह समस्त विद्रूपताओं का सम्मिलन-स्थल भी है। इस लिहाज से मदारीपुर जंक्शन अधिकांश में सामाजिक विसंगतियों-विचित्रताओं का जंक्शन है।
 
 
मदारीपुर के प्रतिनिधि चरित्रों में ऊंची कही जाने वाली बिरादरी के छेदी बाबू और बैरागी बाबू हैं, साथ में साये की तरह उनके तमाम साथी-संघाती भी मौजूद हैं। ये सभी चरित्र पूरी कथा में न केवल अपनी संपूर्ण मेधा के साथ उपस्थित रहकर आपसी खींचतान के नग्न-प्रदर्शन से अपने पतन की इबारत लिख रहे हैं बल्कि लंगीमारी, अंग्रेजीबाजी, पैंतरेबाजी, धोखेबाजी, मक्कारी, तीन-तिकड़म में आकंठ निमग्न रहते हुए अपने नीच करतबों पर खुलकर अट्टहास भी कर रहे हैं।
 
राकेश तिवारी
 
उत्तराखंड के गरम पानी (नैनीताल) में जन्म। कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल से शिक्षा। उपन्यास 'फसक' के अलावा दो कहानी संग्रह 'उसने भी देखा' और 'मुकुटधारी चूहा,' एक बाल उपन्यास 'तोता उड़' और पत्रकारिता पर एक पुस्तक 'पत्रकारिता की खुरदरी जमीन' प्रकाशित। एक दौर में सारिका, धर्मयुग, रविवार, साप्ताहिक हिन्दुस्तान से लेकर हिन्दी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियों के प्रकाशन के साथ चर्चित। बीच की लंबी खामोशी के बाद पिछले कई वर्षों से सक्रिय कथा-लेखन। कुछेक शुरुआती कहानियों का पंजाबी, तेलुगु आदि भारतीय भाषाओं में अनुवाद। एक कहानी (तीसरा रास्ता) पर फ़िल्म बनी है और एक कहानी (दरोग्गाजी से ना कय्यो) के नाट्य-रूपांतरण के बाद दिल्ली सहित कई शहरों में नाट्य प्रस्तुतियां। व्यंग्य और बाल साहित्य लेखन भी।

 
पत्रकार के रूप में अख़बारों और पत्रिकाओं के लिए राजनीति, खेल, साहित्य, कला फ़िल्म, पर्यावरण, जनांदोलन और अन्य समसामयिक विषयों पर लेखन। इंडियन एक्सप्रेस समूह के राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक 'जनसत्ता' में उपसंपादक, वरिष्ठ उपसंपादक, वरिष्ठ संवाददाता, प्रमुख संवाददाता और विशेष संवाददाता के रूप में पत्रकारिता की लंबी पारी। इस दौरान राजनीतिक और अन्य क्षेत्रों के अलावा साहित्यिक-सांस्कृतिक रिपोर्टिंग में एक अलग पहचान बनाई। शुरुआती दौर में रंगकर्म और पटकथा लेखन से थोड़ा-बहुत नाता। छिटपुट तौर पर पत्रकारिता का अध्यापन और अनुवाद कार्य।
 
 
फसक
 
समय की नब्ज पर उंगली होते हुए भी 'फसक' में ज्वलंत दस्तावेज रच देने का बहुप्रतिष्ठित लोभ इतना हावी नहीं है कि क़िस्सागोई पृष्ठभूमि में चली जाए। फसकियों (गपोड़ियों) के इलाके से आने वाले राकेश तिवारी क़िस्सा कहना जानते हैं। जिन लोगों ने 'कठपुतली थक गई', 'मुर्गीखाने की औरतें', 'मुकुटधारी चूहा' जैसी उनकी कहानियां पढ़ी हैं, उन्हें पता है कि इस कथाकार की पकड़ से न समय की नब्ज छूटती है, न पाठक की। 
 
राकेश की खास बात है, इस चीज की समझ कि वाचक की बंद मुट्ठी लाख की होती है और खुलकर भी खाक की नहीं होती बशर्ते सही समय पर खोली जाए। थोड़ा बताना, थोड़ा छुपाकर रखना और ऐन उस वक़्त उद्घाटित करना, जब आपका कुतूहल सब्र की सीमा लांघने पर हो- यह उनकी क़िस्सागोई का गुर है। इसके साथ चुहलबाज भाषा और व्यंग्यगर्भित कथा स्थितियां मिलकर यह सुनिश्चित करती हैं कि एक बार उठाने के बाद आप उपन्यास को पूरा पढ़कर ही दम लें।
 
वीरेन्द्र सारंग
 
जन्म : 12 जनवरी 1959 को उत्तरप्रदेश के जमानियां (हरपुर) गाजीपुर में हुआ। वे हिन्दी के जाने-माने कवि-कथाकार हैं। उन्होंने घुमक्कड़ी और स्वतंत्र लेखन के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी कार्य किया है। कथा और कविता में समान रूप से लिखने वाले सारंगजी की कई कृतियां प्रकाशित हैं।
 
उनकी प्रकाशित कृतियां : कोण से कटे हुए, हवाओ! लौट जाओ, अपने पास होना, चलो कवि से पूछते हैं (कविता संग्रह); वज्रांगी, हाता रहीम (जनगणना विषय का एकमात्र उपन्यास) आदि।

 
वीरेन्द्र सारंग को महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान, कविता के लिए (उप्र हिन्दी संस्थान, लखनऊ) विजयदेव नारायण साही पुरस्कार, भोजपुरी शिरोमणि अलंकरण, प्रेमचंद स्मृति सम्मान, साहित्य भूषण आदि कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।
 
बांझ सपूती
 
चर्चित रचनाकार वीरेन्द्र सारंग के उपन्यास 'बांझ सपूती' को पढ़ते हुए लगता है कि रोज-रोज की असंगतियों, संघर्षों, विमर्शों का यह जरूरी रोजनामचा है। मानवीय सोच के व्यापक धरातल पर उपजी पीड़ा का अंकन करती हुई कथा सफल और सार्थक होने को प्रमाणित करती है। शास्त्रों, लोक-कथाओं, लोक-विश्वासों, धर्मग्रंथों और परंपराओं के भीतर से यात्रा करते हुए समकालीन विमर्श के भीतर से जिंदगी का एक ऐसा ताना-बाना तैयार किया गया है कि पाठक पृष्ठ-दर-पृष्ठ समृद्ध होता हुआ कथा की यात्रा में समा जाता है। यह उपन्यास की विशेषता है कि यहां घटनाओं के नियोजन से किसी सरलीकृत निष्कर्ष तक पहुंचने का उपक्रम नहीं है, बल्कि सहजता से घटतीं घटनाएं लेखक के विमर्श सूत्रों की प्रयोगशाला के रूप में वर्णित हैं।
 
प्रदीप सौरभ
 
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सौरभ निजी जीवन में खरी-खोटी हर खूबियों से लैस। मौन में तर्कों का पहाड़ लिए कब, कहां और कितना जिया, इसका हिसाब-किताब कभी नहीं रखा। बंधी-बंधाई लीक पर कभी नहीं चले। कानपुर में जन्मे लेकिन लंबा समय इलाहाबाद में गुजारा और वहीं विश्वविद्यालय से एमए किया। जन-आंदोलनों में हिस्सा लिया। कई बार जेल गए। कई नौकरियां करते-छोड़ते दिल्ली पहुंचकर 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' के संपादकीय विभाग से जुड़े। कलम से तनिक भी ऊबे तो कैमरे की आंख से बहुत कुछ देखा। कई बड़े शहरों में फोटो प्रदर्शनी लगाई। मूड आया तो चित्रांकन भी किया।

 
पत्रकारिता में 25 वर्षों से अधिक समय पूर्वोत्तर सहित देश के कई राज्यों में गुजारा। गुजरात दंगों की रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कृत हुए। देश का पहला बच्चों का हिन्दी का अखबार निकाला। पंजाब के आतंकवाद और बिहार के बंधुआ मजदूरों पर बनी फिल्मों के लिए शोध। 'बसेरा' टीवी धारावाहिक के मीडिया सलाहकार रहे। दक्षिण से लेकर उत्तर तक के कई विश्वविद्यालयों में उपन्यासों पर शोध। इनके हिस्से 'मुन्नी मोबाइल', 'तीसरी ताली' और 'देश भीतर देश' उपन्यासों के अलावा कविता, बच्चों की कहानी और संपादित आलोचना की 5 पुस्तकें हैं। उपन्यास 'तीसरी ताली' के लिए अंतरराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान से ब्रिटिश संसद में सम्मानित।
 
'तीसरी ताली'
 
'तीसरी ताली' लेखक की जबर्दस्त पर्यवेक्षण-क्षमता का सबूत है। यहां वर्जित समाज की फुर्तीली कहानी है जिसमें इस दुनिया का शब्दकोश जीवित हो उठा है। लेखक की गहरी हमदर्दी इस जिंदगी के अयाचित दुखों और अकेलेपन की तरह है। इस दुनिया को पढ़कर ही समझा जा सकता है कि इस दुनिया को बाकी समाज जिस निर्मम क्रूरता से 'डील' करता है, वही क्रूरता इनमें हर स्तर पर 'इन्वर्ट' होती रहती है। उनकी जिंदगी का हर पाठ आत्मदंड, आत्मक्रूरता, चिर यातना का पाठ है। यह हिन्दी का एक साहसी उपन्यास है, जो जेंडर के इस अकेलेपन और जेंडर के अलगाव के बावजूद समाज से जीने की ललक से भरपूर दुनिया का परिचय कराता है।

 
वाणी प्रकाशन 55 वर्षों से 32 विधाओं से भी अधिक में बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। इसने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रारूप में 6,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वाणी प्रकाशन ने देश के 3,00,000 से भी अधिक गांवों, 2,800 कस्बों, 54 मुख्य नगरों और 12 मुख्य ऑनलाइन बुक स्टोरों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।
 
वाणी प्रकाशन भारत की प्रमुख पुस्तकालय प्रणालियों, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्रिटेन और मध्य-पूर्व से भी जुड़ा हुआ है। वाणी प्रकाशन की सूची में साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत 32 पुस्तकें और लेखक, हिन्दी में अनूदित 9 नोबेल पुरस्कार विजेता और 24 अन्य प्रमुख पुरस्कृत लेखक और पुस्तकें शामिल हैं। संस्था को क्रमानुसार नेशनल लाइब्रेरी, स्वीडन, इंडोनेशियन लिटरेरी क्लब और रशियन सेंटर ऑफ़ आर्ट कल्चर तथा पोलिश सरकार द्वारा इंडो-स्वीडिश, रशियन और पोलिश लिटरेरी सांस्कृतिक विनिमय विकसित करने का गौरव प्राप्त है।

 
वाणी प्रकाशन ने 2008 में भारतीय प्रकाशकों के संघ द्वारा प्रतिष्ठित 'गण्यमान्य प्रकाशक पुरस्कार' भी प्राप्त किया है। लंदन में भारतीय उच्चायुक्त द्वारा 25 मार्च 2017 को वातायन सम्मान तथा 28 मार्च 2017 को वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक व वाणी फाउंडेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी को ऑक्सफोर्ड बिजनेस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में एक्सीलेंस अवॉर्ड से नवाजा गया।
 
प्रकाशन की दुनिया में पहली बार हिन्दी प्रकाशन को इन 2 पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। हिन्दी प्रकाशन के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है। 3 मई 2017 को नई दिल्ली के 'विज्ञान भवन' में 64वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कर-कमलों द्वारा 'स्वर्ण-कमल- 2016' पुरस्कार 'लता : सुर-गाथा' पुस्तक बतौर प्रकाशक वाणी प्रकाशन को प्रदान किया गया।

 
भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने राजधानी के श्रेष्ठ पुस्तक केंद्र ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर के साथ मिलकर कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम-शृंखला की शुरुआत की है जिनमें 'हिन्दी महोत्सव' उल्लेखनीय है।
 
उम्मीद है कि 'विश्व पुस्तक मेला 2018' में 'अपना सत्य, अपना उपन्यास : 21वीं सदी में साहित्य के सामाजिक सरोकार' पर होने वाले इस कार्यक्रम में अधिक से अधिक पाठक और बुद्धिजीवी हिस्सा लेंगे तथा पूरे आयोजन को सफल और यादगार बनाएंगे।