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Indore Literature Festival : आधी हक़ीक़त, आधे फ़साने का संतुलन होना चाहिए कहानी में

Indore Literature Festival : आधी हक़ीक़त, आधे फ़साने का संतुलन होना चाहिए कहानी में - literature fest in indore
हिन्दी कहानी अपने समय का दस्तावेज होती है। आज की कहानी में भी वही स्थिति है। हर दौर की कहानी में अपना वक्‍त होता है। कहानी अपने समय के तनाव और उसके विघटन को उजागर करती है। अगर हम प्रेमचंद की कहानी पढ़ रहे हैं तो इसका मतलब है कि हम प्रेमचंद के समय को देख रहे हैं, उस समय को जी रहे हैं।
इसी के साथ यह भी कहा जा सकता है कि समय के साथ जो बदलाव हो रहे हैं, वे सार्वभौमिक बदलाव नहीं हैं। गांव और शहर का बदलाव अलग-अलग है, तो ऐसे में गांव और शहर के परिवेश में आई कहानी भी अलग-अलग होगी।

इंदौर लिटरेचर फेस्‍टिवल में कहानी की भूमिका पर हुई परिचर्चा में कुछ इसी तरह का विचार निकलकर सामने आया। इस चर्चा में लेखिका डॉक्‍टर गरिमा दुबे, कहानीकार मनीष वैद्य, प्रशांत चौबे, कविता वर्मा, राज बोहरे, किसलय पंचोली उपस्‍थित थे। वे इस समय में कहानी की चिंता, उसकी भूमिका, भाषा और उसके खुलेपन को लेकर विचार सामने आए।

-कहानी में कल्पनाशीलता और अनुभव का संतुलन?

किसी भी कहानी में पूरी कल्‍पना या पूरी तरह से अनुभव नहीं होना चाहिए। यह कहानी को खत्‍म कर देता है। इसलिए कहानी में आधी हकीकत और आधा फसाना होना चाहिए। इसलिए लेखकों को ध्‍यान रखना चाहिए कि कहानी में कल्‍पना और अनुभव का संतुलन होना चाहिए।

-कहानीकार का स्टारडम चिंता का विषय?

कहानीकार प्रशांत चौबे ने कहा कि यह विडंबना है कि अब हर चीज कमर्शियल हो गई है, किताबों की दुनिया में भी बेस्टसेलर का कॉन्सेप्ट आ गया है, ऐसे में यह चिंता वाली बात है। हो सकता है कि कोई अच्छी किताब हो लेकिन वो बेस्टसेलर में नहीं है तो पाठक तक नहीं पहुंच पाती है। इसलिए साहित्य की चिंता करना चाहिए, उसकी सेवा करना चाहिए बजाए उसे कमर्शियल बनाने के।

-जरूरत के मुताबिक खुलापन हो कहानी में?

कहानीकार मनीष वैद्य ने कहानी के खुलेपन के बारे में कहा कि हमारे समाज में जो खुलापन आया है, वो सिर्फ साहित्य में ही नहीं, सिनेमा के साथ और भी कई क्षेत्रों में आया है इसलिए सिर्फ साहित्य से ही गरिमा में रहने की अपेक्षा क्यों जाती है? हालांकि जान-बूझकर खुलापन लाना कहानी के लिए भी हानिकारक है। कहानी में जरूरत के मुताबिक भाषा आदि का खुलापन होना चाहिए।

-हर भाषा में अच्छा साहित्य हो सकता है?

लेखिका डॉक्‍टर गरिमा दुबे ने कहा कि सिर्फ अंग्रेजी से लिखे होने से मेरी कहानी अच्छी हो गई, ऐसा नहीं है। किसी भी भाषा में आप बहुत अच्छा लिख सकते हैं, जैसे संस्कृत में लिखी हर बात धर्म या श्लोक नहीं होता, वैसे ही अंग्रेजी में लिखी हर बात साहित्य नहीं होती। अंग्रेजी में भी कचरा फैला हुआ है। लेकिन अच्‍छा साहित्‍य किसी भी भाषा में हो सकता है।