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Last Updated : शनिवार, 9 अक्टूबर 2021 (13:34 IST)

मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वार्षिक भवभूति अलंकरण एवं ‘वागीश्वरी पुरस्कार’ समारोह सम्पन्न

मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वार्षिक भवभूति अलंकरण एवं ‘वागीश्वरी पुरस्कार’ समारोह सम्पन्न - Hindi sahitya sammelan, hindi literature, award
कोरोना काल के लम्बे संत्रास के बाद भोपाल में आयोजित हुए पहले सबसे भव्य साहित्यिक समागम में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का  भवभूति अलंकरण एवं वागीश्वरी पुरस्कार (2020) समारोह लम्बे समय तक याद किया जाता रहेगा।

कार्यक्रम के अध्यक्ष रहे डॉ दामोदर खड़से, अध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, एवं संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान एवं कथाकार डॉ राधावल्लभ त्रिपाठी के साथ ही साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार महेश कटारे, मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पलाश सुरजन, महामंत्री मणि मोहन एवं प्रदेश भर से आए हुए सम्मेलन पदाधिकारियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ खड़से ने कहा...
"साहित्य अपने समय का सबसे सच्चा इतिहास होता है और वह इतिहास को निरंतर आगे ले जाता है। आज जो नए रचनाकार अलग-अलग विषयों पर लिख रहे हैं, उनकी यह रचनाएं आने वाली पीढ़ियों के समक्ष इतिहास प्रस्तुत करेंगी। इसलिए साहित्य को संरक्षित करना बहुत जरुरी है"

जितनी ज्यादा विधाओं के लोग साहित्य का सृजन करेंगे, उसमें उतना ही ज्यादा नयापन मिलेगा। उन्होंने कहा कि आज हम अंग्रेजी के दबाव में इतने ज्यादा दब चुके हैं कि अपनी मातृभाषा के बारे में सोचने-समझने की शक्ति खोते जा रहे हैं।

ऐसे में अपनी भाषा के साहित्य को संरक्षित रखने के लिए सामाजिक, राजनैतिक और सरकारी तंत्र को विशेष प्रयास करने की जरूरत है। हालांकि यह जरूरी नहीं कि 50 साल पहले साहित्य में जिस भाषा और शब्दों का इस्तेमाल होता था, आज भी उसी भाषा शैली और शब्दों का उपयोग हो, चूंकि आज कई भाषाओं के ऐसे शब्द आम चलन में आ गए हैं कि उनके हिन्दी अर्थ का उपयोग नहीं किया जा सकता है। इसलिए ऐसे शब्दों को अपनी भाषा में शामिल करना होगा।

उन्होंने कहा कि शब्दों को लेकर और भी कई चुनौतियां हैं, जिनसे हम साहित्य के माध्यम से ही निपट सकते हैं। डॉ. खड़से ने कहा कि आज अपनी भाषा को समृद्ध करने और साक्षरता बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए साहित्यकारों को निरंतर सक्रिय रहना होगा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्कृत के प्रख्यात विद्वान एवं हिन्दी के प्रखर कथाकार डॉ. राधा वल्लभ त्रिपाठी ने अपने संबोधन में कहा कि व्यवस्थाएं साहित्य को हमेशा हाशिए पर धकेलती रही है। लेकिन अच्छे साहित्यकारों के कारण साहित्य समाज का निरंतर मार्गदर्शन करता रहा है। इसलिए साहित्यकारों को अपने आपको तराशते रहना चाहिए। इसके लिए उन्हें सभी क्षेत्रों का निरंतर अध्ययन करना चाहिए आज जो नए रचनाकार वागीश्वरी पुरस्कार से सम्मानित हुए हैं, उनसे साहित्य सृजन में भविष्य में काफी उम्मीद है। उन्होंने कहा कि रचनाकारों को अपनी रचनाओं से प्यार होना चाहिए।

पुरस्कृत रचनाकारों की ओर से बोलते हुए गद्यकार सोनल शर्मा ने कहा कि एक रचनाकार होने के नाते मुझे अपने सृजन से बहुत प्रेम है और यही प्रेम श्रेष्ठ सृजन की ओर प्रेरित करता है।

कवि विवेक चतुर्वेदी ने कहा कि कविता एक आत्यंतिक विषय है ये एक अनुभूति, भाव, संवेग या विचार की तरह सहसा मन को छू जाती है जैसे कि आंगन में फुदकती गौरेया को कहीं दाना मिल जाए और वो उसे छिपा ले।
जैसे गर्भिणी अपना गर्भ सम्भालकर चलती है जीवन का सब व्यापार करती है पर चेतना का एक सिरा गर्भ की चिंता में ही छूट जाता है जागते में भी और सोते में भी.... पर इतना निजी संधान होने के बावजूद पुरस्कार इस सुदीर्घ साहित्य यात्रा में मील के पत्थर का काम करते हैं।

इस अवसर पर भवभूति अलंकरण से अलंकृत वरिष्ठ कवि दुर्गा प्रसाद झाला ने कहा - आज की कविता निश्चित रुप से अपने अभिव्यक्ति पैटर्न में अधिक विविध और सम्पन्न हुई है वह जीवन के विविध आयामों से जुड़ रही है इसका भविष्य मुझे उज्जवल जान पड़ता है।

पी एंड टी चौराहा स्थित मायाराम सुरजन भवन में आयोजित इस समारोह के प्रारंभ में सम्मेलन के महेश कटारे ने स्वागत उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का संचालन विजय कुमार अग्रवाल तथा आभार प्रदर्शन सम्मेलन के अध्यक्ष पलाश सुरजन ने किया समारोह में भवभूति अलंकरण प्रख्यात कवि दुर्गाप्रसाद झाला और ओम भारती को प्रदान किया गया।

वागीश्वरी पुरस्कार 2020 में कविता विधा में पल्लवी त्रिवेदी को उनके काव्य संग्रह “तुम जहां भी हो”, हेमन्त देवलेकर को उनके काव्य संग्रह “गुलमकई”, विवेक चतुर्वेदी को उनके काव्य संग्रह “स्त्रियाँ घर लौटती हैं” पुरस्कृत किया गया। वहीं कहानी विधा में वागीश्वरी पुरस्कार अमिता नीरव को उनके कथा संग्रह “तुम जो बहती नदी हो”, कविता वर्मा को उनके कथा संग्रह “कछु अकथ कहानी” के लिए प्रदान किए गए।

उपन्यास विधा के लिए वागीश्वरी पुरस्कार अनघा जोगलेकर को उनकी कृति “अश्वत्थामा यातना का अमरत्व” तथा पंकज कौरव को उनकी कृति “शनि: प्यार पर टेढ़ी नज़र” के लिए दिया गया। वहीं कथेतर गद्य के लिए सोनल शर्मा को उनकी किताब “कोशिशों की डायरी” व आशीष दशोत्तर को उनके व्यंग्य संग्रह “मोरे अवगुन चित में धरो” के लिए प्रदान किए गए।

गीत विधा का वागीश्वरी पुरस्कार इस वर्ष डॉ मौसमी परिहार को उनके नवगीत संग्रह “मन भर उड़ान” के लिये दिया गया। मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की से आयोजित इस कार्यक्रम में शहर के अनेक साहित्यकार और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
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