सोमवार, 27 अक्टूबर 2025
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Written By WD Feature Desk

Chhath Festival Essay: प्रकृति और लोक आस्था की उपासना के महापर्व छठ पर पढ़ें रोचक हिन्दी निबंध

Bihar Chhath Festival
Chhath Puja Essay: छठ महापर्व भारत के सबसे पवित्र और कठिन त्योहारों में से एक है। यह विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव/सूर्य षष्ठी और प्रकृति की छठी मैया या देवसेना को समर्पित है। चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत में व्रती/ व्रत करने वाले लगातार 36 घंटे से अधिक समय तक बिना जल और भोजन के निर्जला व्रत रखते हैं। छठ पूजा की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि इसमें डूबते यानी संध्या और उगते यानी उषा दोनों सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जो जीवन चक्र के संतुलन का प्रतीक है।ALSO READ: Chhath Puja 2025: पीरियड (मासिक धर्म) में छठ पूजा कैसे करें या क्या करें?
 
छठ पर्व का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व: छठ पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक चार दिनों तक चलता है।
 
1. धार्मिक महत्व: छठ पूजा में प्रत्यक्ष देव सूर्य की उपासना की जाती है। माना जाता है कि छठी मैया, जिन्हें ब्रह्मा की मानसपुत्री और प्रकृति देवी का छठा अंश माना जाता है, यह संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देती हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, द्रौपदी ने पांडवों के साथ, और कर्ण ने भी सूर्य की पूजा करके विशेष शक्तियां प्राप्त की थीं।
 
2. वैज्ञानिक और स्वास्थ्य महत्व: यह पर्व वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। संध्या समय यानी डूबते और उगते सूर्य की किरणें या विशेष रूप से पराबैंगनी किरणें शरीर के लिए औषधीय गुण रखती हैं। इस समय जल में खड़े होकर अर्घ्य देने से ये किरणें त्वचा के माध्यम से शरीर में प्रवेश करती हैं, जिससे कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है और प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। तथा निर्जला व्रत और नदी या जलाशय में खड़े होने की प्रक्रिया शरीर के शुद्धिकरण में सहायक मानी जाती है।ALSO READ: Chhath Puja: छठ पूजा: छठी मैया किसकी पत्नी हैं?
 
चार दिवसीय कठिन अनुष्ठान: छठ व्रत का अनुष्ठान अत्यंत कठोर है, जो पवित्रता और अनुशासन की पराकाष्ठा है। 
 
1. पहला दिन (नहाय-खाय): इस दिन व्रती नदी में स्नान करने के बाद शुद्ध सात्विक भोजन (जैसे कद्दू-भात) ग्रहण करते हैं।
 
2. दूसरा दिन (खरना): पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। शाम को गुड़ की खीर या चावल की खीर बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इसके बाद 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत शुरू होता है।
 
3. तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य): यह पर्व का मुख्य दिन होता है। व्रती नए वस्त्र पहनकर, बांस के सूप और दौरा में मौसमी फल, गन्ना, ठेकुआ (विशेष प्रसाद) आदि भरकर नदी या तालाब के घाट पर जाते हैं। डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य देकर उनसे परिवार के कल्याण की प्रार्थना की जाती है।
 
4. चौथा दिन (उषा अर्घ्य और पारण): अगले दिन भोर में उगते सूर्य को दूसरा अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद व्रती छठ मैया से आशीर्वाद लेते हैं और प्रसाद खाकर व्रत का पारण करते हैं।
 
उपसंहार: छठ महापर्व भारतीय संस्कृति में प्रकृति के साथ एकाकार होने और सूर्य की ऊर्जा के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का एक अनमोल उदाहरण है। यह त्योहार हमें सादगी, पवित्रता, तपस्या और आत्म-नियंत्रण का पाठ पढ़ाता है।

छठ पूजा का सबसे बड़ा संदेश यह है कि हमें जीवन के हर दिन की शुरुआत और अस्त/ अंत को समान भाव से स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि दोनों ही जीवन चक्र के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। यही कारण है कि यह पर्व लोक आस्था और श्रद्धा का ऐसा केंद्र बना हुआ है, जिसकी चमक वर्षों-वर्ष बनी रहेगी।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: Chhath Vrat Rules: छठ व्रत के दौरान किन नियमों का पालन करना चाहिए?
 
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