जब कोई लेखक यह कहता है कि कविता लिखना उसके लिए उपासना या साधना की तरह है तो इसे लेकर ख्याल आता है कि तकरीबन हर लेखक या कवि अपने लेखन के बारे में ऐसा ही कुछ कहता है।
इला कुमार ने भी कविताओं की अपनी किताब विस्मृति के बीच के अपने कथन में यही लिखा है। वे कहती हैं कविताएं लिखना उनके लिए उपासना की तरह है। लेकिन उनके इस कथन पर तब भरोसा हो उठता है, जब उनकी किताब के पन्ने पलटने पर एक-एक कविताओं पर दृष्टि जाती है।
कविताएं पढते हुए अनुभव होता है कि सच में यह कविताएं किसी उपासना की तरह की लिखीं गईं हैं।
'विस्मृति के बीच' उनकी कविताओं का हाल ही में प्रकाशित हुआ नया संकलन है। कविताओं का यह दस्तावेज इला कुमार की जीवन यात्रा के दौरान उनकी दृष्टि का एक पूरा गवाह सा नजर आता है।
अपने आसपास वे बहुत गहराई से देखती हैं। अपने चारों तरफ। और वहीं से उनकी कविताएं उपजती हैं जहां वे देखती हैं। कविताओं के लिए देखना अनिवार्य है, लेकिन इला जी संभवतः अपनी तीसरी आंख से अपनी कविताओं को खोजती है। एक ऐसी दृष्टि जो आंखों के देखने से परे है। जैसे कोई आज्ञा चक्र पर देखता हो। संभवतः यही कारण है कि वे कविता लिखने के कर्म को उपासना की तरह देखती हैं।
उनकी कविताओं में दृश्य हैं, दृष्टि है। प्रकृति है। समय है और सवाल भी।
उनकी एक लंबी कविता 'सत्यों की अस्थिगंध' ऐसी कविता है, जिसे पढ़ते हुए लगता है कि कविता अपने देखे हुए दृश्य से भी आगे निकल जाएगी। दृश्य की डिटेलिंग में कविता इतनी गहरी यात्रा करती है कि अनुभव होता है कि कविता अपने तय जगह और समय के परे निकल जाएगी।
इला कुमार की कविता में प्रकृति वृक्ष, झाड़ियां, जल और गौरेया बनकर आते हैं। फिर किसी सुबह को वे इस तरह देखती हैं---
'इन सुबहों में एक खिड़की क्षितिज पर खुल आती है
आलोक पुरुष के राज्य की झलकमात्र
जगत, व्यापार, पंछी, पुष्प और पथिक
आकार लेने उठ खड़े होते हैं'
इला कुमार की कविताएं अमूर्त भी हैं, और अर्थ लिए हुए भी। तो कभी वो इस संसार को ही उल्टा-पुल्टा कर देखना चाहती हैं। उनकी एक कविता उल्टी मीनार में वो लिखती हैं---
सारा कुछ उल्टा पुल्टा
यह उल्टा जग
वह औंधा आसमान
सभी समयोजन
उल्टा ही उल्टा है
उल्टा है क्या ब्रह्मांड सारा?
जन्मे भी हम में से कई उल्टे
कई और जन्मकर हुए उल्टे पुल्टे
इला कुमार के लेखन में बाहर और भीतर के सभी दृश्य उनकी कविताओं के बिम्ब हैं। वे भीतर भी कविता को देखती हैं, और बाहर भी। उनकी कविताओं में दृश्य बहते हैं। अपने अतीत और विस्मृति से निकलकर।
विस्मृति में दर्ज हुईं कविताएं जब वापस लौटती हैं तो उनमें दृश्य भी नजर आते हैं और आकार भी। रंग भी थे और अमूर्तता भी।
कविताओं में अपनी दृष्टि की गहनता और जैसा वे कहती हैं उपासना का अंदाज़ा इसी बात से होता है कि वो अपनी किताब 'विस्मृति के बीच' को उन बंगलों और जगहों को समर्पित करती हैं, जहां-जहां यह कविताएं उनके क़रीब आईं और उनके लेखन का हिस्सा बनी।
विस्मृति के बीच में दर्ज कविताओं को पढने पर हम कवि की निजी यात्रा में संगत करते हैं और वे कविताएं हमें एक व्यापक परिदृश्य में भी लेकर जाती हैं।
मुजफ्फरपुर की लेखिका इला कुमार के अब तक छह कविता संग्रह, एक उपन्यास और एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुका है। सबसे ज़्यादा वे कविताओं की संगत में ही रहती हैं। उन्होंने जर्मन कवि रेनय मारिया रिल्के और चीनी दार्शनिक लाओत्सु की कविताओं का भी हिंदी में अनुवाद किया है। इनकी कई कविताएं बांग्ला, पंजाबी, उड़िया, अंग्रेज़ी और जापानी भाषाओं में अनुवादित हो चुकी हैं।
किताब: विस्मृति के बीच
लेखक- कवि: इला कुमार
भाषा: हिंदी
प्रकाशक: डायमंड पॉकेट बुक्स
कीमत: 350 रुपए