Book review: हिंदी की परंपरागत लिखाई को तोड़ता है गीतांजलि श्री का उपन्यास ‘रेत समाधि’
अलग तरह की लिखाई और शिल्प के लिए जाने जाने वाली उपन्यासकार गीतांजलि श्री के इस नॉवेल का नाम है रेत समाधि। यह राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। इसके पेपरबेक संस्करण की कीमत 399 रुपए है। हिंदी में बंधी बंधाई लिखाई या परंपरागत लेखन से बिल्कुल अलग ही अपनी कहानी कहता है रेत समाधि।
आइए पढ़ते हैं इस उपन्यास रेत समाधि का एक अंश। अस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बज़िद कि अब नहीं उठूंगी।
फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि बदलकर हो जाती है, अब तो नई ही उठूंगी। दादी उठती है। बिलकुल नई। नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छन्द।
कथा लेखन की एक नई छटा है इस उपन्यास में। इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अन्दाज़ में चलते हैं।
हमारी चिर-परिचित हदों-सरहदों को नकारते लांघते। जाना-पहचाना भी बिलकुल अनोखा और नया है यहां। इसका संसार परिचित भी है और जादुई भी, दोनों के अन्तर को मिटाता। काल भी यहां अपनी निरन्तरता में आता है। हर होना विगत के होनों को समेटे रहता है, और हर क्षण सुषुप्त सदियां। मसलन, वाघा बार्डर पर हर शाम होने वाले आक्रामक हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी राष्ट्रवादी प्रदर्शन में ध्वनित होते हैं क़त्लेआम के माज़ी से लौटे स्वर, और संयुक्त परिवार के रोज़मर्रा में सिमटे रहते हैं काल के लम्बे साए।
और सरहदें भी हैं जिन्हें लांघकर यह कृति अनूठी बन जाती है, जैसे स्त्री और पुरुष, युवक और बूढ़ा, तन व मन, प्यार और द्वेष, सोना और जागना, संयुक्त और एकल परिवार, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, मानव और अन्य जीव-जन्तु (अकारण नहीं कि यह कहानी कई बार तितली या कौवे या तीतर या सड़क या पुश्तैनी दरवाज़े की आवाज़ में बयान होती है) या गद्य और काव्य: धम्म से आंसू गिरते हैं जैसे पत्थर। बरसात की बूंद।
किताब: रेत समाधि
लेखक: गीतांजलि श्री
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
कीमत: 399