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Written By WD

गुलाम मंडी : थर्ड जेंडर के दर्द को उकेरता उपन्यास

Book Review
समाज के तिरस्कृत वर्ग किन्नरों पर लिखा उम्दा उपन्यास

हमारी इतनी बड़ी दुनिया का एक बड़ा हिस्सा है थर्ड जेंडर यानी किन्नर। आज भी यह वर्ग संवेदना से ज्यादा उपहास और तिरस्कार का विषय है। मजबूरन यह वर्ग अपने लिए स्वयं ही आवाज उठाने को बाध्य है। विशेषकर साहित्य में इस वर्ग विशेष को लेकर बहुत कम उल्लेखनीय कार्य हुए हैं।




सुविख्यात लेखिका निर्मला भुराड़िया विशेष बधाई की हकदार हैं कि उपन्यास 'गुलाम मंडी' लिखकर उन्होंने ना सिर्फ एक जटिल विषय को अपने लेखन का केंद्र बनाया है बल्कि गहनतम संवेदना के स्तर पर गुलामी के दंश को वे बड़ी कुशलता से अभिव्यक्त भी कर सकी हैं। इस एक ज्वलंत विषय के बहाने उन्होंने कोशिश की है कि इसके आसपास और साथ-साथ की जो भी विकराल समस्याएं हैं उन्हें भी समेटा जाए। परिणामस्वरूप उनके सद्य:प्रकाशित उपन्यास 'गुलाम मंडी' में समाज के सर्वाधिक तिरस्कृत वर्ग किन्नर से लेकर जिस्म फरोशी और मानव तस्करी की निर्मोही और भयावह दुनिया को भी उकेरा गया है। उपन्यास में विषय की मांग के अनुसार उपन्यासकार ने हर उस सच को उघाड़कर रख दिया है जिसे हमारा दो चेहरे वाला तथाकथित सभ्य समाज अपनी मायावी दुनिया की सतह के नीचे ही रखना चाहता है। जब-जब सतह फोड़कर यह सच सामने आने की कोशिश करता है उसे बेशर्मी से दबाने की पुरजोर कोशिश की जाती है।

उपन्यास की नायिकाएं कल्याणी और जानकी हैं। जिनके माध्यम से चमकीली दुनिया के पीछे सांस लेती उस कठोर और दिल को हिलाकर रख देने वाली दुनिया का रेशा-रेशा चरित्र उधेड़ा गया है जो आज भी हमारे लिए रहस्यमयी अपराध की दुनिया है। उपन्यास में समाज का हर रंग है, हर तरह का रस है, लेकिन फिर इसी के साथ जोर से पड़ने वाला वह करारा तमाचा भी है जो पाठक को झनझना कर रख दे। कहीं-कहीं पर भाषा के लिहाज से खुली अभिव्यक्ति देखने को मिलती है जो किसी पाठक को नागवार गुजर सकती है लेकिन कड़वे और नग्न सच की तुलना में विषय की गंभीरता को इसी तीखे अंदाज में रखना जरूरी भी है। उपन्यास में एक से अधिक कहानियां गुंथी गई है हर कहानी का अपना स्वतंत्र वजूद भी है और वे परस्पर सरोकार भी रखती हैं। पढ़ते-पढ़ते कहीं-कहीं स्तब्ध होकर बस दो बूंद भर आंख से निकल पाती है तो कहीं व्यग्रता की उबकाई आते-आते रूक जाती है। उपन्यास बताता है कि मात्र देह मानी जाने से लेकर देवी कहलाने तक एक स्त्री के अंतर का दुख आज तक कोई नहीं समझ सका तो किन्नरों के दर्द को समझने का कलेजा कहां से आएगा?

ले‍खिका निर्मला भुराड़िया के अनुसार- बचपन से ही देखती आई हूं उन लोगों के प्रति समाज के तिरस्कार को जिन्हें प्रकृति ने तयशुदा जेंडर नहीं दिया। इसमें उनका क्या दोष? ये क्यों हमेशा त्यागे गए, दुरदुराए गए, सताए गए, अपमान के भागी बने? इन्हें हिजड़ा, किन्नर, वृहन्नला कई नामों से पुकारा जाता है मगर हमेशा तिरस्कार के साथ ही क्यों? आखिर ये बाकी इंसानों की तरह मानवीय गरिमा के हकदार क्यों नहीं?

उपन्यास पठनीय है और लेखिका का प्रयास प्रशंसनीय है। क्योंकि यह एक ऐसे विषय पर रचा गया है जिस पर सारा समाज बोलने और लिखने से बचता है।

उपन्यास - गुलाम मंडी
लेखिका- निर्मला भुराड़िया
प्रकाशक - सामयिक प्रकाशन
3320-21, जटवाड़ा, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
मूल्य - 200 रुपए