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पंचामृत की रसानुभूति

पंचामृत : काव्य संकलन

Book review | पंचामृत की रसानुभूति
ND
पंचामृत के रचयिता मोतीलाल जैन आजीविकोपार्जन और चिंतन मोर्चे पर अलग-अलग दिशा में खड़े हैं। तमाम अभावों के बीच रहकर उन्होंने तूफानी झंझावातों में भी अपने में बसे 'साहित्यकार' को सिंचित रखा है। वे उन लोगों के लिए दीपस्तंभ हो सकते हैं, जो चिंतन और लेखन के लिए अनुकूल परिस्थितियों की अपेक्षा करते हैं।

पंचामृत काव्य संकलन में कवि मोतीलाल जैन विचित्र ने अपनी एक अलग पहचान साहित्यिक क्षेत्र में दर्ज करवाई है। पंचामृत के मुख्य पृष्ठ पर अंकित चित्र में भगवान चंद्रशेखर 'शिव' व 'गौरी' पंचामृत पात्र के साथ चित्रित किए गए हैं। पंचामृत लिए शिव के पास त्रिशूल, सर्प और सुशोभित है। त्रिशूल से स्पष्ट है कि मनुष्य तीन प्रकार शूलों से घिरा है, सर्प काल का प्रतीक है, चंद्रमा शीतलता का उद्योतक है। इनसे जुड़ने वाला ही जीवन में पंचामृत को पी सकता है, वही शिव है।

साहित्य का रिश्ता समाज से होता है, वहीं से सृजन की उत्पत्ति होती है। पंचामृत अनुभूतियों का सागर है। इसके स्वाद में दर्शन, प्रेम, जीवन के सारतत्व के दर्शन होते हैं। काव्य संकलन के विश्लेषण से लगता है कि इसमें अंतर अनुभूतियों को सजाया गया है। संकलन का हर कोना मानवीय मूल्यों व संवेदनाओं का पक्षधर है। 'एक कदम' शीर्षक से प्रारंभ संकलन में मानव जीवन काया के उद्देश्य को बताया है, जिस पर कबीर दर्शन की छाया गिरती है। 'एक कदम' ने स्वीकारा है कि इस काया को एक दिन पंचतत्वों में विलीन होना है। मनुष्य इस अनिवार्य सत्य को भूल जाता है। जबकि यथार्थ तो यह है कि मृत्यु ही जीवन का दूसरा नाम है।

संकलन के दूसरे पड़ाव में 'बड़ा आदमी' में महामानव को परिभाषित कर यह बताने का प्रयास किया गया है कि आज की प्रासंगिकता है कि विश्वबंधुत्व की भावना को विश्वस्तर पर चरितार्थ कर दिखाना। मानवता भटक न जाए, हम मानवीय मूल्यों की उपासना करना न छोड़ दें, इसका पूरा ख्याल रखा जाए। 'प्यासी चट्टानें' बताती हैं कि हमें विवेक, बुद्धि चातुर्थ के सृजन से समाज की वास्तविक प्यास को शांत करना होगा। अर्थात मनुष्य को उसके मनुष्यत्व का बोध करना होगा।

चौथे संकलन 'समय और आदमी' में 'विचित्र' ने दिखाया है कि समय की दौड़ में आम आदमी भटक गया है। मनुष्य को मनुष्य के लिए समय नहीं है। इंसानियत कोने में दूर खड़ी तमाशा देख रही है। समय द्रुत गति से आदमी को अकेला छोड़ बढ़ रहा है। आदमी में जिस दिन स्वार्थ भाव, थोथा अहं गल जाएगा, आदमी सही अर्थों में आदमी के पास खड़ा मिलेगा।

विचित्र ने नारी को नारायणी, निरुपित करते हुए उसे सृजन करने वाली महादेवी बताया है। वहीं दूसरी ओर उसमें लज्जा, मर्यादा, संस्कृति, धीर, श्रृंगार, दया व करुणा की प्रतिमूर्ति चित्रित किया है।

संकलन के अंतिम पड़ाव पर 'मातृस्मृति' में माँ के लिए विनम्र पुष्पांजलि अर्पित करके कवि अपने बचपन में लौट गया, जहाँ से माँ का स्नेहमयी शीतल व सुखद स्पर्श, कर्ण प्रिय लोरी, प्यार भरे चुंबन के सैकड़ों उपहार, नजरों से बचाने के लिए काजल, माथे पर टीका, हाथों में काजल के लड्डू, पाँवों पर टपले आदि रह-रहकर याद आते हैं।

संकलन में वर्णित कविता में प्रयुक्त शब्द सरल हैं, जो पाठक को सहज में पढ़ने को विवश कर देते हैं। लेकिन शब्दों की गहराई व उनमें छिपे अर्थों को बिना अनुभूति के समझना कठिन लगता है। पंचामृत के इस संक्षिप्त संकलन में दुग्ध, शहद, घृत, दही व चीनी का समांगी मिश्रण है। बस आवश्यकता है, इसे स्वयं चखकर अनुभूति करने की, तभी हम इसका सही रसास्वाद लेकर अंतरानंद में गोता मार सकेंगे। पंचामृत का पाठन पाठक को अंतर्मुखी बनाने के लिए स्वयंमेव बाध्य करता है।

पुस्तक :पंचामृत (काव्य संकलन)
कवि : मोतीलाल जैन 'विचित्र'
प्रकाशक : मालव लोक साहित्य परिषद, 6 /1 , चौबीस खंबा, उज्जैन (म.प्र.)
मूल्य : 25 रुपए।