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Written By ND

उत्तरकथा : अनुत्तरित प्रश्न

स्मृतियों का संजाल बुनती कहानियाँ

Book-review | उत्तरकथा : अनुत्तरित प्रश्न
ND
पेशे से गणित के प्राध्यापक रहे लेखक प्रहलाद तिवारी के नए कहानी संग्रह 'उत्तरकथा' में 12 कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ अतीत की स्मृतियों में पिरोई हुई हैं। इनमें एक तिक्तता-सी महसूस होती है। किसी विचारक के कथन की वह अनुगूँज इनमें सुनाई पड़ती है कि जीवन शोर-गुल से भरी एक असार कहानी है, जिसमें हमेशा लगता है कि कुछ बड़ा होने को है पर अंत में कुछ हाथ नहीं आता।

संग्रह की पहली कहानी 'उत्तर कथा' आम जनजीवन की एक आम कथा है जिसे कहानीकार ने बड़े ही अर्थपूर्ण ढंग से कहने की कोशिश की है। 'सेमल के फूल' पारिवारिक द्वंद्वों की कहानी है, जिसमें मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताओं के सामने प्यार, वफा, मान-मर्यादा का किस तरह ह्रास होता है इसका यथार्थ चित्रण है। 'केवल शून्य' कथा संग्रह की एक ऐसी व्यथा-कथा है जो आम जनजीवन में देखने-सुनने को मिलती रहती है। वास्तव में जीवित रहते व्यक्ति के साथ व्यक्ति न्याय नहीं कर पाता, फिर आजीवन उस दंश को झेलता है।

यह मनोविज्ञान की बात है कि उसी की मृत्यु पर हमें सबसे अधिक पछतावा होता है जिसके जीवित रहते हमें कुछ करना छूट जाता है। तब यही बात हमें कचोटती है कि काश! उसके लिए हम यह कर पाते लेकिन बचता केवल शून्य ही है।

'कभी न कभी व्यक्ति को अप्रासंगिक होना ही पड़ता है। यह उत्तरकथा सदियों से चली आई है, अपवाद स्वरूप ही सही अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता।' ये शब्द हैं कहानी 'मुझे आश्चर्य नहीं है' के। वास्तव में समय के साथ रिश्ते-नाते, एहसान सब आप्रसंगिक हो जाते हैं। 'मैं अपने जीवन की वास्तविकता के बहुत नजदीक पहुँच चुका हूँ। उपलब्धि के नाम पर मेरे पास है एक शून्य, महाशून्य।' 'अंतिम पश्चाताप' में लेखक ने यह उद्धृत किया है। शब्दों की गरिमा बड़ी ही प्रासंगिकता के साथ कहानी संग्रह में उपस्थित होती है।

नव-धनाढ्य वर्ग की नग्नता का एहसास कराने का प्रयास भी लेखक ने संग्रह की अंतिम कहानी 'अंतिम प्रतीक्षा' के माध्यम से कहने का प्रयास किया है। इसमें कहानीकार ने बहुत स्पष्टता से अपनी बात अपने पात्र सत्येन्द्र के चरित्र के माध्यम से कही है। जमीन से जुड़े होने का गर्व भी कथा संग्रह में अनेक जगह परिलक्षित होता है। इसका उदाहरण कहानी में सत्येन्द्र के पिता और उसकी बातचीत में प्रकट होता है।

इसमें सत्येन्द्र के पिता कहते हैं,'तेली की बेटी अलसी के पौधों को ही भूलने लगी तो बचता क्या है!' इन कहानियों में रिश्तों के गणित और सामान्य आम जनजीवन की नीरस घटनाएँ कई जगह पाठकों को बोझिल लग सकती हैं। कहानी संग्रह यदि संपूर्णता और समग्रता से देखा जाए तो इसमें स्मृतियों का संजाल, आत्मीय रिश्तों का बेगानापन, बचपन की यादें और अपनी माटी की भीनी गंध समाई है। साथ ही इसमें यादों के भँवर से एक दर्द-सा और कुछ 'अनुत्तरित प्रश्न' उभरते हैं।

पुस्तक : उत्तरकथा
लेखक : प्रहलाद तिवारी
प्रकाशक : सार्थक प्रकाशन, 100 ए गौतम नगर, नई दिल्ली-110049
मूल्य : 300 रु.