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Written By ND

अनगढ़ लेकिन मीठी रचनाएँ

समीक्षक

Book review | अनगढ़ लेकिन मीठी रचनाएँ
ND
मनुष्य का रचनात्मक अंतस, उसे हर अवस्था और हर उम्र में अपने विचारों को कागज़ पर उतारने के ढेर बहाने उपलब्ध करवाता रहता है। उस पर प्रकृति प्रदत्त आँखों और कानों जैसी इंद्रियाँ उसे कई सारी देखी और सुनी चीजों के लिए प्रतिक्रिया करने को उकसाती हैं। कुछ लोग इस उकसावे के निमंत्रण को स्वीकार लेते हैं और रचना क्षेत्र में ऊँचाई पर पहुँच जाते हैं, कुछ स्वीकारते हैं लेकिन केवल स्वांतः सुखाय हेतु और कुछ देखकर भी अनदेखा कर देते हैं।

इन सारी प्रक्रियाओं में वह अवस्था भी महत्वपूर्ण है जिसमें रचना के इस निमंत्रण को स्वीकारा गया है। इसलिए नन्ही वय में लिखी गई कोई भी चीज़ अनगढ़ खटास के साथ प्रयास की मिठास का भी मजा देती हैं। साक्षी के संग्रह 'साक्षी समय की' में दर्ज कविताएँ कुछ इसी श्रेणी की हैं। यह कविता संग्रह साक्षी के आँखों देखे संसार के अलावा कल्पना लोक की भी सैर करवाता है। उस कल्पना लोक की जहाँ पेड़ की शाखाएँ चॉकलेट की बनी होती हों और उन पर लगे होते हों लड्डू... हाँ साक्षी के समय के अनुसार इन लड्डुओं का स्थान जरूर पित्जा, बर्गर ने ले लिया है।

जाहिर है हर रचनाकार पर उसका देशकाल और आसपास प्रभावी होता है, साक्षी पर भी है। साक्षी कल्पना लोक के अतिरिक्त समाज तथा व्यवस्थाओं पर भी अपनी उम्र के लिहाज से प्रश्न उठाती है और परियों के लोक में घूमने का आनंद भी लेती है। उसे शिकायत है ढेर सारे भ्रमित करते विज्ञापनों से तो वह दूसरी ओर जिंदगी के रंगों के बारे में फिलॉसफी की बातें करती भी नजर आती है।

संग्रह की कविताएँ जाहिर रूप से साक्षी की उम्र की साक्षी हैं और उनका कच्चापन दिखाई देता है। साथ ही आज के हालात के अनुसार हिन्दी की कविताओं के रूप में प्रस्तुत हिंग्लिश की कविताएँ नई पीढ़ी के भाषा ज्ञान का प्रमाण देती नज़र आती हैं, लेकिन इस उम्र में यह प्रयास भी सराहनीय है। कम्प्यूटर और वीडियोगेम में उलझे बच्चे दिमागी रचनात्मकता की तरफ रुझान रख रहे हैं यही बड़ी बात है। हाँ... निश्चित तौर पर संग्रह का ले-आउट, कागज़ एवं छपाई बेहद आकर्षक तथा उत्कृष्ट कोटि की है और यह सबसे पहले अपनी ओर ध्यान खींचती है।

पुस्तक : साक्षी समय की
लेखिका : साक्षी चिण्डालिया
कल्पना तथा सज्जा : अंकित एडवरटाइजिंग, इंदौर