कैसे होती है आयुर्वेदिक चिकित्सा
डॉ.रश्मि सुधा आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा है जो शरीर, मस्तिष्क और मन के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। आयुर्वेद प्राकृतिक तरीके से व्यक्ति की शारीरिक परेशानियाँ दूर करती है।इस चिकित्सा के दौरान व्यक्ति के शरीर में उत्पन्न हुए उस असंतुलन का पता लगाया जाता है जो उसकी इस बीमारी का कारण है। असंतुलन को पता कर उसको प्राकृतिक तरीके से दूर करने की कोशिश की जाती है।आयुर्वेद में पाँचों तत्वों वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाश को अलग-अलग मात्रा में मिलाकर तीन दोष वात, पित्त और कफ बनाए गए हैं।आकाश और वायु के संयुक्त रूप से वात बनता है, वहीं अग्नि और जल को मिलाकर पित्त बनता है। कफ बनता है जल और पृथ्वी के तत्वों को मिलाकर।इनके असंतुलन की वजह से व्यक्ति के शरीर में बीमारियाँ घर कर लेती हैं।आयुर्वेद में चिकित्सा शरीर के संचालन प्रारूप को ध्यान में रखकर की जाती है। इसमें शरीर और मस्तिष्क के ताल-मेल पर खास ध्यान दिया जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार बीमारी की 6 अवस्थाएँ होती हैं। आधुनिक चिकित्सा में बीमारी का पाँचवी अवस्था में इलाज किया जाता है। इस अवस्था तक आते-आते रोग बहुत बढ़ जाता है और छठी अवस्था में रोग में कई समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। आयुर्वेद में बीमारी का पहली अवस्था से इलाज किया जाता है। पहली से लेकर चौथी अवस्था तक रोगी के शरीर में आए असंतुलन का कारण पता कर इसे संतुलित करने की कोशिश की जाती है।आयुर्वेदिक चिकित्सा करवाते समय इस बात का ध्यान होना चाहिए कि इस चिकित्सा पद्धति से बीमारी ठीक होने में समय लगता है, इस पद्धति में रातो-रात कोई चमत्कार नहीं होता।