509 ईसा पूर्व आदि शंकराचार्य ने कुल चार मठ और चार शंकराचार्यों की नियुक्ति की थी। इन चार मठों के अंतर्गत ही आदि शंकराचार्य ने दशनामी साधु संघ की स्थापना की थी। दशनामी संप्रदाय के नाम इस प्रकार हैं:- गिरी, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम।
उक्त दस संप्रदाय के साधुओं को दस क्षेत्र में बांटा गया। जिन संन्यासियों को पहाड़ियों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में प्रस्थान किया, वे गिरी एवं पर्वत और जिन्हें जंगली इलाकों में भेजा, उन्हें वन एवं अरण्य नाम दिया गया। जो संन्यासी सरस्वती नदी के किनारे धर्म प्रचार कर रहे थे, वे सरस्वती और जो जगन्नाथपुरी के क्षेत्र में प्रचार कर रहे थे, वे पुरी कहलाए। जो समुद्री तटों पर गए, वे सागर और जो तीर्थस्थल पर प्रचार कर रहे थे, वे तीर्थ कहलाए। जिन्हें मठ व आश्रम सौंपे गए, वे आश्रम और जो धार्मिक नगरी भारती में प्रचार कर रहे थे, वे भारती कहलाए।
दश क्षेत्र के चार मठ :
उक्त क्षेत्र के सभी साधुओं को मिलाकर संघ बना। दस संघ को चार क्षेत्रों में बांटकर सभी क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए गए। इन चार मठों की विस्तृत जानकारी।
1. वेदान्त ज्ञानमठ :
श्रृंगेरी ज्ञानमठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है।
2. गोवर्धन मठ :
गोवर्धन मठ भारत के पूर्वी भाग में उड़ीसा राज्य के पुरी नगर में स्थित है।
3.शारदा मठ :
शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है।
4. ज्योतिर्मठ :
उत्तरांचल के बद्रिकाश्रम में स्थित है ज्योतिर्मठ।
उक्त मठों के मठाधिशों को ही शंकराचार्य कहा जाता है। लेकिन उक्त चार मठों के अलावा तमिलनाडु में स्थित कांची मठ को भी शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया हुआ माना जाता है। इसके अलावा भी कई मठ हो चले हैं। मूलत: कांचीपुरम सहित उक्त चार मठों को ही धार्मिक मान्यता प्राप्त है।
शैवपंथ के आचार्यों को शंकराचार्य, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर आदि की पदवी से सम्मानित किया जाता है। उसी तरह वैष्णव पंथ के आचार्यों को रामानुजाचार्य, रामानंदाचार्य, महंत आदि की पदवी से सम्मानित किया जाता है। नागा दोनों ही संप्रदाय में होते हैं। मूलत: चार संप्रदायों (शैव, वैष्णव, उदासीन, शाक्त) के कुल तेरह अखाड़े हैं। इन्हीं के अंतर्गत साधु-संतों को शिक्षा और दीक्षा दी जाती है।