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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : शनिवार, 30 जनवरी 2021 (18:31 IST)

माघ माह में कुंभ मेले की तरह इन दो जगह पर भी लगता है मेला

माघ माह में कुंभ मेले की तरह इन दो जगह पर भी लगता है मेला - Son Kund rajim mela 2021
देशभर में माघ माह में नदियों पर स्नान का महत्व बढ़ जाता है। खास कर माघ पूर्णिमा के दिन तो इसका महत्व और भी ज्यादा होता है। माघ माह में ही कुंभ मेले की तरह इन दो जगहों पर भी मेले का आयोजन होता है और लोग स्नान, दान, श्राद्ध, तर्पण और पूजा करके पुण्य कमाते हैं। आओ जानते हैं कि वे कौनसी दो जगहें हैं।
 
 
गौरतबल है कि राजिम कुंभ मेला 10 फरवरी से प्रारंभ हो गया है जो 11 मार्च तक चलेगा। 
 
 
1.सोनकुंड मेला : यह मेला माघी पूर्णिमा के अवसर पर छत्तीसगढ़ में आयोजित होता है। सोनकुंड में निरंतर 80 वर्ष से माघी पूर्णिमा पर्व पर साधु संतों का आगमन होता है। बताया जाता है कि अनेक महापुरुषों ने यहां तपस्या की थी। छत्तीसगढ़ के पेन्ड्रा ‌‌क्षेत्र में सोनकुंड में संतों की उपस्थिति में धूमधाम से माघी पूर्णिमा पर्व मनाया गया। सोनकुंड को सोनमुडा और सोनबचरवार के नाम से भी जाना जाता है। सोनकुंड एक धार्मिक स्थल पर्यटन है। जहां पर छत्तीसगढ़ के ग्रामवासियों और वनवासियों के लोग दर्शन करने आते हैं। सोनकुंड आश्रम में पांच दिवसीय मेला आयोजित होता है इसमें कई संत महात्मा सम्मलित होते हैं। आश्रम बेलगहना में भी संत समागम होता है। ज्ञात हो कि बेलगहना आश्रम से संबंधित 32 आश्रमों में प्रमुख माने जाने वाले सोनकुंड आश्रम में नर्मदा और सोनभद्र के प्राचीन मंदिर हैं। सोनकुंड में अनूपपुर, शहडोल, कोरबा और बिलासपुर, लोरमी आदि स्थान से लोग पहुंचते हैं।
 
 
2. राजिम कुंभ : महानदी पूरे छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदी है और इसी के तट पर बसी है राजिम नगरी। राजधानी रायपुर से 45 किलोमीटर दूर सोंढूर, पैरी और महानदी के त्रिवेणी संगम-तट पर बसे छत्तीसगढ़ की इस नगरी राजिम राजिम का माघ पूर्णिमा का मेला संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ के लाखों श्रद्धालु इस मेले में जुटते हैं। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है। इसे राजिम कुंभ मेला भी कहते हैं। महानदी, पैरी और सोढुर नदी के तट पर लगने वाले इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव का मंदिर है। हालांकि अब इस मेले को राजिम माघी पुन्नी मेला कहा जाता है। राजिम कुंभ में भी कुंभ की तरह एक दर्जन से ज्यादा अखाड़ों के अलावा शाही जुलूस, साधु-संतों का दरबार, झांकियां, नागा साधुओं और धर्मगुरुओं की उपस्थिति मेले के आयोजन को सार्थकता प्रदान करेगी।