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Haridvaar kumbh mela 2021 : कुंभ के साधु क्या संन्यासी हैं, जानिए 7 बातें

Haridvaar kumbh mela 2021 : कुंभ के साधु क्या संन्यासी हैं, जानिए 7 बातें - Haridvaar kumbh mela 2021
सच्चा संत नागा
हरिद्वार कुंभ मेले में कुंभ में इस वक्त लाखों साधु-संत डेरा डाले हुए हैं। शैव, वैष्णव, उदासन, बैरागी आदि साधुओं के अलावा भी कई अनगिनत साधु संप्रादाय है। सवाल यह उठता है कि हजारों या लाखों की संख्या में पधार रहे ये साधु सच में ही साधु है या कि आजकल साधु बनना भी एक पेशा है या मजे से रहने का अवसार है? आओ जानते हैं कि संत क्या?
 
 
1. कहते हैं कि 13 अखाड़े के साधु ही साधु होते हैं बाकी तो सभी व्यापारी या नौटंकीबाज है। अधिकतर संत हिंदू संत धारा 13 आश्रम-अखाड़ से जुड़े हैं और बाकी स्वघोषित संत या साधु बाबा हैं। उनमें से भी कुछ के कैंप हैं तो कुछ सड़क पर ही चादर बिछाकर बैठे हुए हैं। इन्हें साधु नहीं माना जाता है।
 
2. दसनामी परंपरा में संत बनते वक्त प्रतीज्ञा ली जाती है कि वह (साधु) किसी के सामने न नतमस्तक होगा, न ही किसी की प्रशंसा-समर्थन करेगा वह बस अपना ही धर्म कर्म करेगे। अब समझा जा सकता है कि जो इस नियम के विरुद्ध कार्य कर रहा है उसे कैसे साधु माने?
 
3. संत तो क्रोध, मोह, अहंकार और द्वैष से दूर रहता है फिर कुंभ में शिविर के लिए भूमि नहीं मिलने पर क्रोध क्यों? पहले स्नान करने का अहंकार क्यों? अखबार में छपने का मोह क्यों? 
 
4. जो संत अखाड़े से नहीं जुड़े हैं जैसे आसाराम बापू जैसे संत या सड़क पर चादर बिछाकर बैठा बाबा। दोनों ही स्वघोषित संत है और दोनों ही के संत होने की कोई ग्यारंटी नहीं, क्योंकि दोनों ही धन के लिए कार्य कर रहे हैं धर्म के लिए नहीं।
 
5. साधुओं के तंबूओं में भी डिजिटल इंडिया की झलक देखने को मिलती है। लैपटॉप, इंटरनेट, सीसीटीवी कैमरे और तमाम तरह की तकनीकि सुविधा से संपन्न साधु अब अपना काम आसानी से कर लेते हैं। बताइये साधु को तो सभी तरह की सांसारिक सुविधाओं से दूर रहने की हिदायत दी जाती है।
 
6. इस सबके बावजूद कुछ ऐसे भी संत हैं जिन पर हमें गर्व हो सकता हैं जो दुनिया की चमकधमक देखने के लिए पूरे 12 वर्ष बाद कुंभ में ही नजर आते हैं और बाकी समय वह तप और तपस्या में ही रमे रहते हैं ऐसे सिद्ध पुरुषों के दर्शन सिर्फ कुंभ में ही हो सकते हैं। यह संत किसी हिंदू संत धारा से जुड़े भी हो सकते हैं और नहीं भी। इन्हें इतने बड़े महाकुंभ में ढूंढना मुश्किल होगा।
 
5. बहुत से भोगी अब योगी बनना चाहते हैं और जो पहले से ही योगी हैं अर्थात जिन्होंने कभी संसार का स्वाद नहीं चखा है वह भोगी होने की जुगत में लगे रहते हैं। चाहे चुपके-चुपके ही सही। लेकिन हाल ही के वषों में मूर्ख बनाने के लिए एक तीसरा रास्ता सामने आया है- न भोग न योग वरन मध्यम मार्ग। अर्थात, न भोग न दमन वरन जागरण। ऐसा कहने वाले ओशो संन्यासी या उनके जैसे ही संगठनों के संन्यासी मिल जाएंगे।
 
6. आजकल संसार में रहते हुए भी संन्यास का मजा लिया जा सकता है और संन्यास में रहते हुए भी संसार साधा जा सकता है। गृहस्थ संन्यास को सबसे उत्तम मार्ग बताया गया है लेकिन गृहस्थ रहते हुए भी आप खुद को संन्यासी घोषित करके दोनों हाथों में लड्डू रख सकते हैं जैसे कि ओशो संन्यासी।
 
7. कैसा हो संन्यासी?
असल में संत या संन्यासी वही है जिसका मन संसार में रहते हुए भी सांसारिक व्यर्थता को समझता है और वैराग्य में जिता है। निरंतर संयम, अनुशासन और यम-नियम में रहने वाला व्यक्ति ही संन्यासी है फिर वह चाहे सुट-बुट पहना हुआ हो या भगवा वस्त्र। वह संसार में रहता हो या आश्रम में।
 
आज भी हमारे संसार में हमारे आसपास मुक्त रूप से जीते हुए संन्यासी व्यक्तिय मिल जाएंगे। भले ही उन्होंने भगवा धारण नहीं किया है और वे खुद को संन्यासी भी नहीं कहते हैं। ऐसे सज्जन लोगों के कारण ही हमारे समाज में अच्छाइयों और सच्चाइयों का आज भी आदर बना हुआ है अन्यथा यह समाज जंगली सभ्यता से भी बुरा होगा। यह संन्यासी किस्म के लोग ही संसार को अपने-अपने स्तर पर शिक्षा देकर समाज सुधारने का कार्य करते रहते हैं। देश का कर्मवीर ही संन्यासी है।
 
कामना और वासना के दैत्यों से जूझने की स्थली को ऐसे लोग ही ऊर्जा देते हैं। संसार में जो पाना है वह अपनों के बीच से ही पाना है। धर्म और कर्म का समन्वय ही योग है। जो लोग विधिवत संन्यास लेते हैं उनका लक्ष्य होता है भौतिकता से परिपूर्ण संसार को छोड़कर त्याग की वृत्ति को अपनाकर मोक्ष प्राप्त करना। लेकिन संसार में रमे गृहस्थ संन्यासी का लक्ष्य होता है समाज को परमात्मा का स्वरूप समझकर उसके लिए कार्य करना और साक्षी भाव में जीवन जीना।
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