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गोपालदास 'नीरज' की पुण्यतिथि पर पढ़ें 10 लोकप्रिय कविताएं Gopaldas Neeraj
मंगलवार,जुलाई 19, 2022
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नीरज ने जिस कोमलता और रोमांस को फूलों के शबाब की तरह घोला, दिल की कलम से दर्शकों को जो इतनी नाजुक पाती लिखी वह कई कई सदियों तक अविस्मरणीय रहेगी।
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मुंबई। भारतीय सिनेमा जगत में गोपाल दास नीरज का नाम एक ऐसे गीतकार के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने प्रेम, विरह, प्रकृति और जीवन से रचे बसे गीतों की रचना कर श्रोताओं का दिल जीता। गोपालदास सक्सेना 'नीरज' का जन्म उत्तरप्रदेश के इटावा जिले में 4 जनवरी ...
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कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान
जिनको जाना था यहां पढ़ने को स्कूल
जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल
करें मिलावट फिर न क्यों व्यापारी व्यापार
जब कि मिलावट से बने रोज यहां सरकार
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भाषा|
बुधवार,जनवरी 5, 2011
प्रख्यात कवि और गीतकार गोपाल दास नीरज का फिल्मी सफर भले ही सिर्फ पाँच साल का रहा हो लेकिन मरते दम तक लिखने के ख्वाहिशमंद इस अदीब को इस अवधि में लिखे गए ‘कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे’ और ‘जीवन की बगिया महकेगी’ जैसे अमर गीतों के लिए आज भी रायल्टी ...
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साहित्य के उज्जवल नक्षत्र नीरज का नाम सुनते ही सामने एक ऐसा शख्स उभरता है:जो स्वयं डूबकर कविताएँ लिखता हैं और पाठक को भी डूबा देने की क्षमता रखता है।
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
अब बुलाऊँ भी तुम्हें तो तुम न आना!
टूट जाए शीघ्र जिससे आस मेरी
छूट जाए शीघ्र जिससे साँस मेरी,
इसलिए यदि तुम कभी आओ इधर तो
द्वार तक आकर हमारे लौट जाना!
अब बुलाऊँ भी तुम्हें...!!
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
अभी न जाओ प्राण ! प्राण में प्यास शेष है,
प्यास शेष है,
अभी बरुनियों के कुञ्जों मैं छितरी छाया,
पलक-पात पर थिरक रही रजनी की माया,
श्यामल यमुना सी पुतली के कालीदह में,
अभी रहा फुफकार नाग बौखल बौराया,
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
मगर निठुर न तुम रुके, मगर निठुर न तुम रुके!
पुकारता रहा हृदय, पुकारते रहे नयन,
पुकारती रही सुहाग दीप की किरन-किरन,
निशा-दिशा, मिलन-विरह विदग्ध टेरते रहे,
कराहती रही सलज्ज सेज की शिकन शिकन,
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
अर्ध सत्य तुम, अर्ध स्वप्न तुम, अर्ध निराशा-आशा
अर्ध अजित-जित, अर्ध तृप्ति तुम, अर्ध अतृप्ति-पिपासा,
आधी काया आग तुम्हारी, आधी काया पानी,
अर्धांगिनी नारी! तुम जीवन की आधी परिभाषा।
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
पिया पिया कह मुझको भी पपिहरी बुलाती कोई,
मेरे हित भी मृग-नयनी निज सेज सजाती कोई,
निरख मुझे भी थिरक उठा करता मन-मोर किसी का,
श्याम-संदेशा मुझसे भी राधा मँगवाती कोई,
किसी माँग का मोती बनता ढल मेरा भी आँसू,
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
अंतिम बूँद बची मधु को अब जर्जर प्यासे घट जीवन में।
मधु की लाली से रहता था जहाँविहँसता सदा सबेरा,
मरघट है वह मदिरालय अब घिरा मौत का सघन अंधेरा,
दूर गए वे पीने वाले जो मिट्टी के जड़ प्याले में-
डुबो दिया करते थे हँसकर भाव हृदय का 'मेरा-तेरा',
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
प्यार करना तो बहुत आसान प्रेयसि !
अन्त तक उसका निभाना ही कठिन है।
है बहुत आसान ठुकराना किसी को,
है न मुश्किल भूल भी जाना किसी को,
प्राण-दीपक बीच साँसों को हवा में
याद की बाती जलाना ही कठिन है।
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
तुम आए कण-कण पर बहार आई
तुम गए, गई झर मन की कली-कली।
तुम बोले पतझर में कोयल बोली,
बन गई पिघल गुँजार भ्रमर-टोली,
तुम चले चल उठी वायु रूप-वन की
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
प्राण! पहले तो हृदय तुमने चुराया,
छीन ली अब नींद भी मेरे नयन की।
बीत जाती रात हो जाता सवेरा,
पर नयन-पंछी नहीं लेते बसेरा,
बन्द पंखों में किये आकाश-धरती,
खोजते फिरते अँधेरे का उजेरा।
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
ऐसी सुधि बिसराई
कि पाती तक न पठाई।
बरखा गई मिलन-ऋतु बीती,
घोर घटा गहरी मन-चीती,
पर गागर रीती की रीती,
अधरों बूंद न आई
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
जिन मुश्किलों में मुस्कराना हो मना,
उन मुश्किलों में मुस्कराना धर्म है!
जिस वक्त जीना गैर-मुमकिन-सा लगे,
उस वक्त जीना फर्ज है इंसान का।
लाजिम लहर के साथ है तब खेलना,
जब हो समुन्दर पर नशा तूफान का।
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
धनियों के तो धन हैं लाखों
धनियों के तो धन हैं लाखों
मुझ निर्धन के धन बस तुम हो।
कोई पहने माणिक-माला
कोई लाल जड़ावे,
कोई रचे महावर-मेहँदी
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
जग रूठे तो बात न कोई
तुम रूठे तो प्यार न होगा।
मणियों में तुम ही तो कौस्तुभ
तारों में तुम ही तो चन्दा,
नदियों में तुम ही तो गंगा
गन्धों में तुम ही निशिगन्धा।
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शनिवार,अप्रैल 26, 2008
मुझे न करना याद, तुम्हारा आँगन गीला हो जाएगा।
रोज़ रात को नींद चुरा ले जाएगी पपीहों की टोली,
रोज़ प्रात को पीर जगाने आएगी कोयल की बोली।
रोज़ दुपहरी में तुमसे कुछ कथा कहेंगी सूनी गलियाँ,
रोज़ साँझ को आँख भिगो जाएँगी वे मुरझाई कलियाँ।
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