• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. राष्ट्रीय
  4. gopal das neeraj death biography in hindi
Written By
Last Updated : गुरुवार, 19 जुलाई 2018 (22:39 IST)

नीरज की जीवनी : जीवन से रचे बसे गीत की रचना में माहिर थे गोपाल दास नीरज

नीरज की जीवनी : जीवन से रचे बसे गीत की रचना में माहिर थे गोपाल दास नीरज - gopal das neeraj death biography in hindi
मुंबई। भारतीय सिनेमा जगत में गोपाल दास नीरज का नाम एक ऐसे गीतकार के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने प्रेम, विरह, प्रकृति और जीवन से रचे बसे गीतों की रचना कर श्रोताओं का दिल जीता। गोपालदास सक्सेना 'नीरज' का जन्म उत्तरप्रदेश के इटावा जिले में 4 जनवरी 1925 को हुआ था। नीरज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इटावा से पूरी की।

इसके बाद उन्होंने स्नाकोत्तर की पढ़ाई कानपुर के डीए भी कॉलेज से पूरी की। नीरज का बचपन काफी संघर्ष एवं अभाव से बीता। विभिन्न कारणों से उत्पन्न अनुभव को नीरज ने अपने दिल की अतल गहराइयों मे सहेज कर रखा और बाद में उन्हें अपने गीतों में पिरोया। नीरज के गीतों में जिंदगी की कशमकश को काफी शिद्दत से महसूस किया जा सकता है।

नीरज जिंदगी के उतार-चढ़ाव तथा जीवन के सभी पहलुओं को शायद बहुत ही करीब से महसूस किया। शायद यही वजह है कि उनके गीतों में जिंदगी का जुडा संघर्ष झलकता है। युवावस्था में पहुंचते ही नीरज के गीतों की धूम मच गई। सभी उन्हें आदर सहित कवि सम्मेलन में बुलाने लगे। इसके बाद नीरज के गीतों की देशभर में धूम तो हो ही गई, लेकिन उनकी पारिवारिक जरूरतें पूरी नही हो रही थीं।

कवि सम्मेलन से प्राप्त आय से परिवार की गाड़ी खींचनी मुश्किल थी। परिवार के बढ़ते खर्चों को देखकर नीरज अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर के रूप में काम करने लगे। इस बीच कवि सम्मेलन में भाग लेना जारी रखा।

इसी दौरान एक कवि सम्मेलन के दौरान उनके एक गीत को सुनकर निर्माता आर. चन्द्रा गद्गद् हो गए। उन्होंने नीरज में भारतीय सिनेमा का एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया। आर. चंद्रा ने नीरज को अपनी फिल्म 'नई उमर की नई फसल' के लिए गीत लिखने की गुजारिश कर दी, लेकिन नीरज को यह बात रास नही आई और उन्होंने उनकी पेशकश ठुकरा दी, लेकिन बाद में घर की कुछ जिम्मेदारियों के कारण उन्होंने आर. चंद्रा से दोबारा संपर्क किया और अपनी शर्तों पर ही गीत लिखना स्वीकार किया।

गोपालदास नीरज : 5 पैसे से 5 लाख तक

वर्ष 1965 में नीरज बेहतर जिंदगी की तलाश में मायानगरी मुंबई आ गए। नीरज को सबसे पहले आर.चंद्रा की फिल्म 'नई उमर की नई फसल' के लिए गीत लिखने का मौका मिला। कुछ दिनों के बाद नीरज को मुंबई फिल्म इंडस्ट्री की चकाचौंध कुछ अजीब-सी लगने लगी और वे मुंबई छोड़कर वापस अलीगढ़ चले गए।

अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज की अर्थव्यवस्था को देख नीरज का मन दुखी हो गया और वे एक बार फिर से नए जोशोखरोश से बतौर गीतकार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए मुंबई आ गए। मुंबई आने के बाद नीरज को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

इस दौर में पंजाब से आए हुए लोगों का फिल्म इंडस्ट्री में दबदबा था। फिल्म की कहानी और गीत पर उर्दू जुबान काफी हद तक हावी थी। नीरज ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए अथक प्रयास किया। नीरज ने सरल शब्दों में कर्णप्रिय गीतों की रचना कर फिल्म इंडस्ट्री का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। शीघ्र ही उनकी मेहनत रंग लाई और वे बतौर गीतकार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।

राजकपूर नीरज की 'राजमार्ग के पदयात्री' कविता से काफी प्रभावित थे। उन्होंने नीरज को इसी तर्ज पर अपनी फिल्म 'मेरा नाम जोकर' के लिए गीत लिखने की पेशकश की और राजकपूर की बात मानते हुए नीरज ने 'ए भाई जरा देख के चलो आगे भी नही पीछे भी' गीत की रचना की।

वर्ष 1971 में प्रदर्शित शशि कपूर और राखी अभिनीत फिल्म 'शर्मीली' के गाने 'आज मदहोश हुआ जाये रे मेरा मन', 'ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली' 'मेघा छाई आधी रात बैरन बन गइ निंदिया' जैसे सदाबहार गानों के जरिए उन्होंने गीतकार के रूप मे उन उंचाइयों को छू लिया जिसके लिए वे मुंबई आए थे। इसके बाद नीरज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

उन्होंने एक से बढ़कर एक गीत लिखकर जन-जन के हृदय के तार झनझनाए और उन्हें भावविभोर कर फिल्मी गीतगंगा को समृद्ध किया। नीरज के सिने करियर में उनकी जोड़ी संगीतकार एसडी बर्मन के साथ भी काफी पसंद की गई।

सबसे पहले इन दोनों फनकारों का गीत-संगीत वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म 'प्रेम पुजारी' में पसंद किया गया। इसके बाद नीरज, एसडी बर्मन ने कई फिल्मों में अपने गीत संगीत के जरिए श्रोताओं का मन मोहे रखा। इन फिल्मों में 'शर्मीली', 'तेरे मेरे सपने', 'छुपा रुस्तम' जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल हैं।
 
 
नीरज के सदाबहार गीतों की फेहरिस्त में शामिल कुछ गीत  : कांरवा गुजर गया गुबार देखते रहे, लिखे जो खत तुझे जो तेरी याद में, ऐ भाई जरा देख के चलो आगे भी नही पीछे भी, रंगीला रे तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन, शोखियो में घोला जाये फुलों का शबाब, खिलते हैं गुल यहां खिल के बिखरने को, आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन, ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली, चूड़ी नही मेरा दिल है, दिल आज शायर है, धीरे से जाना बगियन में ओ खटमल जैसे सुपरहिट गीत शामिल है।

मिले ये सम्मान : नीरज को मिले सम्मानों को देखा जाए तो उन्हें उनके रचित गीत के लिए वर्ष 1969 में प्रदर्शित फिल्म चंदा और बिजली के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा साहित्य के जगत में नीरज के बहुमूल्य योगदान को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पद्‍मश्री से नवाजा गय। नीरज को अपने सिने करियर में फिल्म इंडस्ट्री से वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। नीरज ने अपनी रचित इन पंक्तियों के माध्यम से अपने जीवन को दर्शाया था।
 
आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा
जहां प्रेम की चर्चा होगी मेरा नाम लिया जाएगा
गीत जब मर जाएंगे फिर क्या यहां रह जाएगा
एक सिसकता आंसुओं का कारवां रह जाएगा
ये भी पढ़ें
सरकार का व्हाट्सएप को दूसरा नोटिस, फर्जी संदेश रोकने के लिए प्रभावी समाधान करे