एक अरब लोगों से हाथ मिलाया
भुवनेश्वर से लौटकर धनंजय इधर अमेरिका के राजदूत टिमाथी जे. रोमर कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी (कीट) के छात्रों के साथ बास्केटबॉल खेलते हुए धमा-चौकड़ी मचा रहे थे और उधर कोलकाता से आई अमेरिकी कोंसुल जेनरल वेद पाइन का हलक सूखा जा रहा था। उनको यह चिंता खाए जा रही थी कि घंटों हो गए, रोमर ने अब तक एक गिलास जूस तक नहीं पिया है। कहीं उनकी तबियत न खराब हो जाए। वह गरीब आदिवासी बच्चों की मुफ्त शिक्षा के लिए स्थापित स्कूल कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (किस) के संस्थापक अच्युत सामंत से बार-बार चिरौरी कर रही थीं - अब रोकिए रोमर को लेकिन रोमर कहाँ मानने वाले थे!सात अप्रैल को यहाँ पहुँचे रोमर पूरे एक घंटे तक बास्केटबॉल कोर्ट में उछल-कूद मचाते रहे। साठ की उम्र वाले इस अमेरिकी राजनेता के इस स्टेमिना से भला कौन हैरान नहीं हुआ होगा। खेलने में उनकी फुर्ती भी गजब की थी। भारत घूमने के दौरान वह कई जगह क्रिकेट के बल्ले भी भांज चुके हैं। रोमर भारत में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के मानो "मैन फ्राइडे" बनकर आए हैं।ओबामा ने उन्हें भारत के एक अरब लोगों से "हाथ मिलाने" का जिम्मा सौंपा है। इसे महज गिनती के लिहाज से लें तो किसी एक आदमी के लिए यह असंभव है लेकिन अपने घुमंतू मिजाज की वजह से "रोमिंग रोमर" के रूप में चर्चित हो चुके अमेरिकी राजदूत में इसके लिए भरपूर जज्बा भी दिखता है और स्टेमिना भी। भुवनेश्वर में उन्होंने इसकी भरपूर बानगी दिखाई।"
किस" स्कूल के गेट के बाहर दूर तक लाइन में स्कूली बच्चे खड़े थे। वह अपनी कार से उतर गए और उनमें से हर एक बच्चे से हाथ मिलाते व उसके गालों को प्यार भरी थपकी देते वह धूप में डेढ़ किलोमीटर तक पैदल चलते हुए स्कूल पहुँचे। फिर बच्चों के साथ डांस करते रोमर की स्कूल के सभी १० हजार छात्रों से हाथ मिला लेने की ललक देखते ही बनती थी। बच्चों को संबोधित करते हुए नमस्कार और नमस्ते कहने की उनकी अदा भी मनमोहक थी।अगस्त में पद संभालने के बाद से अब तक उन्होंने देश को मानो छान मारा है। बिहार और बंगाल सहित ११ राज्यों के छोटे-बड़े १५ शहरों में जा चुके हैं। जहाँ भी जाते हैं गरीब और झुग्गी बस्तियों में जाना नहीं भूलते हैं। वह बच्चों को साफ पानी पीने, पढ़ाई करने आदि की नसीहत देने के साथ-साथ अपने राष्ट्रपति बराक ओबामा की भावनाओं से अवगत कराते हैं।रोमर हर बात में ओबामा को वैसे ही उद्धृत करते हैं जैसे बाइबिल के किसी संत की वाणी को उद्धृत कर रहे हों। उनके लटके-झटके और लाइफस्टाइल भी बराक ओबामा से मिलते-जुलते हैं। भूख, अशिक्षा और रोग भगाने की कोई बात उठे तो तय मानकर चलिए कि वह ओबामा वाणी का जिक्र जरूर करेंगे। भारत में अमेरिका के कुछ सबसे "यंग" राजदूतों में एक रोमर जहाँ भी जाते हैं अपने होस्ट (मेजबान) को ओबामा की किताब "ऑडेसिटी ऑफ होप" की कॉपी तो देते ही हैं, ओबामा का वह "वेदवाक्य" भी दोहराना नहीं भूलते कि "चाहे कोई कितना भी नीचे हो अपनी पढ़ाई और मेहनत के बल पर वह किसी भी ऊंचाई पर पहुँच सकता है।" ओबामा ने इस किताब में गोरों से मिलने वाली हिकारत से लेकर दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की अपनी दुर्गम यात्रा का वर्णन किया है।अमेरिकी कंसल्टेंट जनरल के प्रेस चीफ प्रसांत के. बोस कहते हैं - "रोमर ए बिलियन हैंडशेक्स" का बराक ओबामा का मिशन लेकर आए हैं। खुद रोमर कहते हैं, "मेरे यहां आने पर बराक ने मुझे कहा था सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था वाले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का राजदूत बनकर जाना कोई मामूली जिम्मेदारी नहीं है। उन्होंने मुझे भारत के एक अरब दिलों में जगह बनाने की नसीहत दी थी।" जिस तरह वह हर जगह ओबामा का गुण गाते नहीं थकते हैं, उससे लगता है कि जब ओबामा भारत की यात्रा पर आएँगे तब तक यहाँ के हर आमो-खास के दिलों पर ओबामा की अमिट छाप पड़ चुकी होगी। दुनिया के सबसे बड़े आदिवासी स्कूल "किस" के बच्चों को संबोधित करते हुए रोमर को सुनकर लगा कि भारतीय दिलों को एक अमेरिकन राजनेता की अदा और जज्बे के साथ जीतने का हर हुनर है उनके पास। वह ओबामा पर गाँधी के प्रभाव का उल्लेख भी करते हैं। कोलकाता में गुरु रवींद्रनाथ के घर में रखी उनकी किताब के "एकला चलो" को उद्धृत करते हुए कहते हैं, "ओबामा का जज्बा भी वही है। छोटा से छोटा आदमी अपनी मेहनत के बल पर बुलंदी पर पहुँच सकता है इसलिए सुनहरे ख्वाब बुनने में कोताही नहीं करनी चाहिए और कोई साथ न भी दे तो मंजिल की तरफ अकेले निकल पड़ना चाहिए। फिर 'किस' के संस्थापक अच्युत सामंत की तरफ इंगित करते हुए कहते हैं, 'डॉ. सामंत ने रवींद्रनाथ ठाकुर की इस उक्ति को चरितार्थ कर दिया है।'पिछले दिनों पॉश इलाके चाणक्यपुरी के एक किनारे पर बसी झुग्गी-बस्ती संजय गाँधी कैंप में जाकर भी उन्होंने खासी प्रशंसा बटोरी। वहाँ वह अपनी पत्नी शैली और अपने चार बच्चे पैट्रिक, मैथ्यू, साराह और ग्रेस एवं अपनी भतीजी को लेकर गए थे।झुग्गी-बस्ती के गरीब बच्चों के बीच जाकर मानो खुद भी बच्चे बन गए। उनसे बच्चों-सी चुहलबाजी करते हुए उन्होंने सबका दिल जीत लिया था। बकौल उनकी भतीजी जॉन स्टोन उसके चाचा बच्चों पर इसी तरह प्यार बरसाते हैं। बच्चों के साथ खुद बच्चे बन जाते हैं। जिनको किताबें पढ़ने का शौक है उनके लिए रोमर की लाइब्रेरी खजाना है। शायद ही ऐसा कोई टाइटिल होगा जो उनकी लाइब्रेरी में न मिले। रोमर को किताबों के पहले संस्करण को जमा करने का शौक है। इतिहास और जीवन गाथाएँ पढ़ने में उनकी खास रुचि है।'
रोमिंग रोमर' के नाम से उनका ब्लॉग है। अब जल्द ही उनका एक ट्विटर अकाउंट भी होगा। यह सलाह उन्हें लखनऊ के रजा हसन नकवी ने उन्हें यूँ लिखा है - 'लखनऊ का आदाब, आपने हमारे शहर लखनऊ के लिए अपना कीमती वक्त दिया, शुक्रिया।मैं आपका ब्लॉग देखकर सुखद हैरानी से भर गया। मैंने तुरंत ट्वीट पर इसका जिक्र कर दिया ताकि दूसरों को भी आपके ब्लॉग का राज मालूम हो सके।' अब देखिए रोमर के जवाब का अंदाज - 'हाई रजा, मैं लखनऊ की अपनी यात्रा कभी नहीं भूल पाऊँगा।ट्वीट की सलाह के लिए थैंक्स लेकिन मुझे यह बताइए - 'ट्वीट को उर्दू में क्या कहेंगे?' फिलहाल उनके ब्लॉग पर संदेशों की भरमार से सत्ता के गलियारे के कुछ बाबुओं को भले ही कोफ्त हो रही हो लेकिन आम लोगों के दिलों में वह अपनी जगह बनाते जा रहे हैं।