शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. गणेश चतुर्थी 2023
  3. गणेश चतुर्थी: इतिहास-संस्कृति
  4. How Lord Ganesha was born
Written By

Ganesh Chaturthi 2023 : कैसे हुआ था गणेशजी का जन्म, जानें 5 लोकप्रिय जन्म कहानियां

Ganesh Chaturthi 2023 : कैसे हुआ था गणेशजी का जन्म, जानें 5 लोकप्रिय जन्म कहानियां - How Lord Ganesha was born
Ganesh Ganapati Chaturthi story : भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान श्री गणेशजी का जन्मदिवस मनाया जाता है। इस दिन से 10 दिनों का गणेश उत्सव प्रारंभ होता है। कैसे हुआ था भगवान श्री गणेशजी का जन्म? भगवान गणेश जी के जन्म के संबंध में 3 कथाएं प्रचलन में है। आओ जानते हैं कि किस तरह हुआ था गणपति जी का जन्म।
 
1. माता के ठोर तप से जन्मे गणेशजी : श्री गणेश चालीसा में वर्णित है कि माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया। इस तप से प्रसन्न होकर स्वयं श्री गणेश ब्राह्मण का रूप धर कर पहुंचे और उन्हें यह वरदान दिया कि मां आपको बिना गर्भ धारण किए ही दिव्य और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति होगी। ऐसा कह कर वे अंतर्ध्यान हो गए और पालने में बालक के रूप में आ गए।
 
2. पुण्यक व्रत करने से हुए गणेशजी : यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती द्वारा पुण्यक व्रत के फलस्वरूप गणेशजी का जन्म हुआ था। इस व्रत को करने के लिए माता को पारिजात के फूलों की आवश्यकता थी। शिवजी ने इन फूलों के लिए इंद्रदेव से पारिजात का एक वृक्ष मांगा था परंतु इंद्रदेव ने इसे देने से इनकार कर दिया था तब भगवान शिव ने पारिजात का एक वन ही निर्मित करके पार्वती जी को सौंप दिया था।
 
3. माता पर्वती ने मिट्टी से बनाए गणेशजी : गणेशजी का जन्म अयोनिज माना गया है। अयोनिज अर्थात जो योनि से उत्पन्न न हो। माता पार्वती ने उन्हें मिट्टी से निर्मित किया था। कहते हैं कि माता ने अपनी सखी जया और विजया के कहने पर एक गण की उत्पति अपने मैल से की थी। हालांकि शिवपुराण की कथा के अनुसार माता पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी लगाई थी, इसके बाद जब उन्होंने अपने शरीर से हल्दी उबटन उतारी तो उससे उन्होंने एक पुतला बना दिया। पुतले में बाद में उन्होंने प्राण डाल दिए। इस तरह से विनायक पैदा हुए थे। इसके बाद माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिए कि तुम मेरे द्वार पर बैठ जाओ और उसकी रक्षा करो, किसी को भी अंदर नहीं आने देना।
 
कुछ समय बाद शिवजी घर आए तो उन्होंने कहा कि मुझे पार्वती से मिलना है। इस पर गणेश जी ने मना कर दिया। शिवजी को नहीं पता था कि ये कौन हैं। दोनों में विवाद हो गया और उस विवाद ने युद्ध का रूप धारण कर लिया। इस दौरान शिवजी ने अपना त्रिशूल निकाला और गणेश का सिर काट डाला।
पार्वती को पता लगा तो वह बाहर आईं और रोने लगीं। उन्होंने शिवजी से कहा कि आपने मेरे बेटा का सिर काट दिया। शिवजी ने पूछा कि ये तुम्हारा बेटा कैसे हो सकता है। इसके बाद पार्वती ने शिवजी को पूरी कथा बताई। शिवजी ने पार्वती को मनाते हुए कहा कि ठीक है मैं इसमें प्राण डाल देता हूं, लेकिन प्राण डालने के लिए एक सिर चाहिए। इस पर उन्होंने गरूड़ जी से कहा कि उत्तर दिशा में जाओ और वहां जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सोई हो उस बच्चे का सिर ले आना। गरूड़ जी भटकते रहे पर उन्हें ऐसी कोई मां नहीं मिली क्योंकि हर मां अपने बच्चे की तरफ मुंह कर के सोती है। अंतत: एक हथिनी दिखाई दी। हथिनी का शरीर का प्रकार ऐसा होता हैं कि वह बच्चे की तरफ मुंह कर के नहीं सो सकती है। गरूड़ जी उस शिशु हाथी का सिर ले आए। भगवान शिवजी ने वह बालक के शरीर से जोड़ दिया। उसमें प्राणों का संचार कर दिया। उनका नामकरण कर दिया। इस तरह श्रीगणेश को हाथी का सिर लगा।
 
4. उबटन और गंगा के पानी से जन्मे गणेशजी : पद्म पुराण के अनुसार एक बार श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के उबटन से एक आकर्षक कृति बनाई, जिसका मुख हाथी के समान था। फिर उस आकृति को उन्होंने गंगा में डाल दिया। गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गई। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।
 
5. शिवजी ने पंचतत्वों से बनाए गणेशजी : वराहपुराण के मुताबिक भगवान शिव ने गणेशजी को पचंतत्वों से बनाया है। जब भगवान शिव गणेश जी को बना रहे थे तो उन्होंने विशिष्ट और अत्यंत रुपवान रूप पाया। इसके बाद यह खबर देवताओं को मिली। देवताओं को जब गणेश के रूप और विशिष्टता के बारे में पता लगा तो उन्हें डर सताने लगा कि कहीं ये सबके आकर्षण का केंद्र ना बन जाए। इस डर को भगवान शिव भी भांप गए थे, जिसके बाद उन्होंने उनके पेट को बड़ा कर दिया और मुंह हाथी का लगा दिया।
 
लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिए वर मांगा। आशुतोष शिव ने 'तथास्तु' कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने पुष्प-वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार-बार प्रणाम किया। भगवान शिव ने गणेश जी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया।