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Written By ND

इस दफा फीकी ही समझिए होली

नो टू होली

इस दफा फीकी ही समझिए होली -
- अंशुमाली रस्तोगी
ND

इस दफा मैंने होली न मनाने का निर्णय लिया है। न किसी मित्र को निमंत्रण दिया है अपने घर बुलाने का, न ही उनके घर जाने का। दरअसल, मैं इन दिनों बेहद मानसिक प्रताड़ना के दौर से गुजर रहा हूं। मैं दिन या रात किसी भी वक्त बेचैन-सा हो उठता हूं, जब जेल में बंद बेचारे भ्रष्टाचारियों का दर्द मुझे याद आ जाता है। इस दर्द में न किसी खुशी में शरीक हो पाता हूं, न किसी रंग की रंगीनियत को सहन कर पाता हूं।

होली के माहौल की खुमारी मुझे मुंह चिढ़ाती हुई-सी नजर आती है। हर रंगा-पुता चेहरा कुरूप-सा लगता है। न गुझिया के स्वाद का मजा ले पाता हूं, न बसंती की मदहोशी में झूम पाता हूं। बस, ध्यान जेल की दीवारों के आस-पास ही भटकता रहता है।

देखा जाए तो उन माननीयों का अपराध इतना भी बड़ा नहीं था कि सरकार ने उन्हें जेल में डलवा दिया। कुछ सौ करोड़ रुपए जनहित की योजनाओं के बहाने निजहित के लिए ही तो बचाए थे उन्होंने। अब सरकारी पद पर रहकर बंदा इतना भी नहीं करेगा तो फिर उस पद का अपमान न होगा! आखिर अपने देश में सरकारी व राजनीतिक पद होते किसलिए हैं! फिर उनके अपने परिवार हैं। परिवार से जुड़े अनेक खर्च हैं।

ND
महंगाई जिस तेजी से बढ़ रही है, उसमें अतिरिक्त आय के बिना काम चल ही नहीं सकता। हम यह क्यों भूलते हैं कि अपने देश में भ्रष्टाचार समस्या से कहीं आगे पुरानी परंपरा रही है। अब परंपरा को जीवित रखने का जोखिम किसी न किसी को तो उठाना ही होगा न! जिन बेचारे मंत्रियों-अफसरों ने इस जोखिम को उठाने की हिम्मत की सरकार ने उन्हें जेल में डलवा दिया। सरेआम एक पुरानी परंपरा को कुचलने की कोशिश की गई।

जिम्मेदार (?) मंत्रियों-अफसरों की फजीहत करवाई सो अलग। क्या यह सरकारी कदम तानाशाही जैसा नहीं है? उन बेचारों की इस स्थिति को महसूस कर भला किसका दिल नहीं पिघलेगा? मेरा तो दिल करता कि मैं अपने सभी सुख और आराम त्यागकर उन्हीं के कने जाकर रहूं। उन्हें ढांढस बंधाता रहूं। एक पुरानी परंपरा को जीवित रखने की खातिर जेल जाने के वास्ते उन्हें धन्यवाद दूं। उनका हौसला बढ़ाऊं। आखिर इंसानियत भी तो कोई चीज होती है बंधु। फिर किसी बड़ी गलती की सजा उन्हें मिलती, तब तो जायज भी ठहराया जाता। घपले-घोटालों में संलिप्तता अब इतना भी बड़ा अपराध नहीं!

चारों तरफ से नैराश्य मुझे घेर रहा है। एक तरफ बेचारे माननीयों के प्रति मेरी तकलीफ कम हो नहीं पाती तो हाल में जापान में आई सुनामी ने रंग में भंग डाल दिया है। गम को गलत करने के तईं जितनी भी लगाओ, सब क्षणभर में उतर जाती है। पसोपेश में हूं कि होली को सेलिब्रेट करूं या प्रकृति के बेरहम दस्तूर पर आंसू बहाऊं। फिलहाल, अपन की होली तो इस दफा फीकी ही समझिए यानी नो टू होली।