किशोरावस्था की उम्र में लड़कों में शारीरिक बदलाव के साथ-साथ आवाज में भारीपन, दाढ़ी-मूंछ आना जैसे कई बदलाव होते हैं। लड़कों के विचारों और व्यवहार में भी कई परिवर्तन आते हैं जिन पर ध्यान देकर लड़कों को समझाना जरूरी हैं। आइए, जानते हैं किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखते लड़कों के प्रति उनके पिता का क्या कर्तव्य होना चाहिए-
1. किशोर होते लड़कों को भी उतने ही मानसिक संबल और सहानुभूति की दरकार होती है, जितनी लड़कियों को होती है।
2. इस उम्र में हार्मोंस और शारीरिक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहे बच्चे के मन में सेक्स को लेकर ढेरों सवाल होते हैं और दूसरी ओर पैरेंट्स का अनुशासन और हिदायतों का शिकंजा और ज्यादा कसता जाता है।
3. अगर आपका बेटा किशोरावस्था की दहलीज पर है तो वह शारीरिक और मानसिक सामंजस्य कैसे स्थापित करे, यह उसके लिए ही नहीं बल्कि आपके लिए भी एक बड़ा सवाल होता है।
4. इस उम्र में लड़कों को हार्मोंनल परिवर्तन की वजह से गुस्सा ज्यादा आता है और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है।
5. दाढ़ी-मूँछ आना शुरू हो जाती है और आवाज में भी भारीपन आ जाता है जो कुछ समय बाद सही हो जाता है जिसका दूसरे बच्चे मजाक उड़ाते हैं। लड़कों को उनके शरीर में होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताएं।
6. इस उम्र में अक्सर वे अपनी सेहत और साफ-सफाई की ओर से लापरवाह हो जाते हैं तो ऐसे समय में उन्हें अपनी शारीरिक सफाई का ध्यान रखने के लिए समझाएं।
7. किशोरावस्था में बच्चों के मन में अनेक सवाल होते हैं। घर में टीवी और इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है, जिनसे वे जो चाहें, वे सूचनाएं मिनटों में हासिल कर सकते हैं।
8. अक्सर इंटरनेट पर घंटों चेटिंग चलती है और लड़के पोर्न साइट्स देखते हैं। यदि आप उन्हें ऐसा करते देखते हैं तो प्यार से समझाएं और बताएं कि उनकी उम्र अच्छी शिक्षा हासिल करके करियर बनाने की है।
9. इस उम्र में बच्चों का पढ़ाई पर ध्यान कम लगता है। छोटी-छोटी बात पर हाइपर एक्टिव होना, डिप्रेशन, ज्यादा सोचना इस तरह की समस्याएं होती हैं। गुस्से में वे अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाते। यदि उनका व्यवहार नियंत्रण से बाहर हो जाए तो मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग जरूरी हो जाती है।
10. इस उम्र में अक्सर लड़के थोड़े उच्छृंखल हो जाते हैं और उन्हें किसी की भी टोका-टोकी बुरी लगती है। ऐसे में पिता को उनसे संवाद करने की पहल करनी चाहिए। पिता को चाहिए कि बच्चे की समस्याएँ सुनें, उसके दोस्त बनें और उसे इस उलझनभरे दिनों में सुलझा हुआ माहौल दें।
11. किशोर उम्र के बच्चों की सबसे बड़ी समस्या है उनकी पहचान का संकट। पहले से ही पहचान के संकट से जूझते बच्चे को सख्ती और अनुशासन पसंद नहीं आता है। अपने और बच्चों के बीच थोड़ी दूरी भी बनाकर रखें। बच्चों की हर छोटी-बड़ी बात की जासूसी नहीं करें।
12. फोन पर यदि वह आपको देखकर अचानक चुप हो जाए तो समझ जाएं कि उसे प्रायवेसी चाहिए। उसकी प्राइवेसी की कद्र करें। यदि वह अपने लिए अलग चीजों की मांग करता है, तो उसे पूरा करने का प्रयास करें। बच्चे का मानसिक संबल बनें। उनके साथ कलह न करें तो बच्चे प्यार से धीरे-धीरे आपकी समस्याओं को समझने का प्रयास करेंगे।
13. इस उम्र में लड़कों का भी मूड तेजी से बदलता है। किसी के दुःख से वे परेशान हो उठते हैं और किसी भी सीमा तक उनकी मदद करने को तैयार रहते हैं। कुछ बच्चे बहिर्मुखी हो जाते हैं तो कुछ अंतर्मुखी हो जाते हैं।
14. भावनात्मक परिवर्तन के दौर में उनका मार्गदर्शन करें।
15. इस उम्र में बच्चे एक-दूसरे के प्रति जल्दी आकर्षित हो जाते हैं। इस उम्र में आकर्षण होना स्वाभाविक है जो समय के साथ धीरे-धीरे कम हो जाता है। अगर मामला भावनात्मक जुड़ाव का हो तो पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता जिसका बच्चे की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है। बच्चे को इन तमाम सचाइयों से प्यार से रूबरू कराएं।