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Written By WD

ममता बनर्जी : प्रोफाइल

Mamta Banerjee Profile | ममता बनर्जी : प्रोफाइल
ममता बनर्जी ने 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में धुआंधार जीत हासिल कर लगातार दूसरी बार सत्ता का सिंहासन हासिल किया है। 2011 के चुनावों में बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। ममता बनर्जी ने माकपा और वामपंथी दलों की सरकार को 34 वर्षों के लगातार शासन के बाद उखाड़ फेंका था। 1997 में कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) बनाई और इसकी अध्यक्षा बनीं। आमतौर पर उन्हें 'दीदी' कहकर बुलाया जाता है। 
इससे पहले वे केन्द्र में दो बार रेलमंत्री बनीं। रेलमंत्री बनने वाली वे पहली महिला थीं। वे केंद्र में कोयला, मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री, युवा मामलों और खेल तथा महिला व बाल विकास की राज्यमंत्री भी रह चुकी हैं। वर्ष 2012 में टाइम पत्रिका ने उन्हें विश्व के 100 प्रभावी लोगों की सूची में स्थान दिया था।
 
ममता का जन्म 5 जनवरी, 1955 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। निम्न मध्यमवर्गीय दम्पति प्रमिलेश्वर बैनर्जी और गायत्री देवी उनके पिता-माता थे। जब वे बहुत छोटी थीं, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। अपने स्कूली दिनों से ही राजनीति में जुड़ी ममता कांग्रेस से लंबे समय तक जुड़ी रहीं। सत्तर के दशक में उन्हें राज्य महिला कांग्रेस की महासचिव बनाया गया। उस समय में वे कॉलेज में पढ़ती थीं। 
 
दक्षिण कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज से उन्होंने इतिहास में ऑनर्स की डिग्री हासिल की थी। बाद में, कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इस्लामिक इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की। श्रीशिक्षायतन कॉलेज से उन्होंने बीएड की डिग्री भी ली। उन्होंने जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज, कोलकाता से कानून में भी एक डिग्री ली थी। 
 
अपने समूचे राजनीतिक जीवन में ममता ने सादा जीवन शैली अपनाई और वे हमेशा ही परम्परागत बंगाली सूती की साड़ी (जिसे तंत कहा जाता है) पहनती रही हैं। उन्होंने कभी कोई आभूषण या श्रृंगार प्रसाधन की चीज नहीं अपनाई। वे अपने जीवन में अविवाहित रही हैं। उनके कंधे पर हमेशा ही एक सूती थैला लटका नजर आता है जो कि उनकी पहचान बन गया है। 
 
ममता बैनर्जी का राजनीतिक करियर कांग्रेस पार्टी के साथ शुरू हुआ और 1976 से 1980 तक वे महिला कांग्रेस की महासचिव रहीं। 1984 के आम चुनाव में वे भारत की सबसे कम उम्र के सांसदों में से एक बनीं जब उन्होंने जादवपुर संसदीय क्षेत्र से अनुभवी वामपंथी नेता सोमनाथ चैटर्जी को हरा दिया।
 
वे युवा कांग्रेस की महासचिव भी बन गईं। पर 1989 की कांग्रेसी विरोधी आंधी में वे अपनी सीट नहीं बचा सकीं। 1991 का चुनाव उन्होंने कलकत्ता दक्षिण संसदीय सीट से लड़ा और वे इस पर 2009 के आम चुनावों तक जीतती रहीं। 
 
वर्ष 1991 में जब राव की सरकार बनी तो उन्हें मानव संसाधन विकास, युवा मामले और खेल तथा महिला और बाल विकास राज्यमंत्री बनाया गया। खेलमंत्री के तौर पर उन्होंने देश में खेलों की दशा सुधारने को लेकर सरकार से मतभेद होने पर इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी। 1993 में उन्हें इस मंत्रालय से छुट्‍टी दे दी गई। अप्रैल 1996 में उन्होंने कांग्रेस पर बंगाल में माकपा की कठपुतली होने का आरोप लगाया। अगले वर्ष ही उन्होंने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस बना ली।
 
वर्ष 1999 में उनकी पार्टी भाजपा के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चे (एनडीए) सरकार का हिस्सा बन गई और उन्हें रेलमंत्री बना दिया गया। वर्ष 2002 में उन्होंने अपना पहला रेल बजट पेश किया और इसमें उन्होंने बंगाल को सबसे ज्यादा सुविधाएं देकर सिद्ध कर दिया कि उनकी दृष्टि बंगाल से आगे का नहीं देख पाती है।
 
उन्होंने कहा था कि रेल सुविधाओं से बांग्लादेश और नेपाल को भी जोड़ा जाएगा। पर 2000 में पेट्रोलियम उत्पादों में मूल्यवृद्धि  का विरोध करते हुए उन्होंने अपने सहायक अजित कुमार पांजा के साथ मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया, लेकिन बाद में इन्हें बिना कोई कारण बताए वापस भी ले लिया।
 
वर्ष 2001 की शुरुआत में तहलका खुलासों के बाद ममता ने अपनी पार्टी को राजग से अलग कर लिया, लेकिन जनवरी 2004 में वे फिर से सरकार में शामिल हो गईं। 20 मई, 2004 को आम चुनावों के बाद पार्टी की ओर से केवल वे ही चुनाव जीत सकीं।
 
उन्हें कोयला और खानमंत्री बनाया गया, लेकिन 20 अक्टूबर, 2005 में उन्होंने राज्य की बुद्धदेव भट्‍टाचार्य सरकार के खिलाफ औद्योगिक विकास के नाम पर किसानों की उपजाऊ जमीनें हासिल किए जाने का विरोध किया। 
 
ममता को 2005 में राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा। उनकी पार्टी ने कोलकाता नगर निगम पर से नियंत्रण खो दिया और उनकी मेयर ने अपनी पार्टी छोड़ दी। 2006 में विधानसभा चुनावों में भी तृणमूल कांग्रेस के आधे से अधिक विधायक चुनाव हार गए। नवंबर, 2006 में ममता को सिंगूर में टाटा मोटर्स की प्रस्तावित कार परियोजना के स्थल पर जाने से जबरन रोका गया। इसके विरोध में उनकी पार्टी ने धरना, प्रदर्शन और हड़ताल रखी थी। 
 
वर्ष 2009 के आम चुनावों से पहले ममता ने फिर एक बार यूपीए से नाता जोड़ लिया। इस गठबंधन को 26 सीटें मिलीं और ममता फिर केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गईं। उन्हें दूसरी बार रेलमंत्री बना दिया गया। 2010 के नगरीय चुनावों में तृणमूल ने फिर एक बार कोलकाता नगर निगम पर कब्जा कर लिया।
 
2011 में टीएमसी ने भारी बहुमत से विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की और ममता राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। इस बार उन्होंने राज्य से वामपंथी मोर्चे का सफाया कर दिया था और लगातार 34 वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद वामपंथी सत्ता से बाहर हो गए।
 
केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों पर अपनी पैठ जमाने के बाद ममता ने 18 सितंबर, 2012 को यूपीए से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद नंदीग्राम में हिंसा की घटना हुई। गांव में सेज विकसित करने के लिए गांववालों की जमीन ली जानी थी। माओवादियों के समर्थन से गांव वालों ने पुलिस कार्रवाई का प्रतिरोध किया, लेकिन गांव वालों और पुलिस बलों के हिंसक संघर्ष में 14 लोगों की मौत हुई थी।
 
ममता ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री शिवराज पाटिल से कहा कि बंगाल में माकपा समर्थकों की हिंसक गतिविधियों पर रोक लगाई जाए। बाद में जब राज्य सरकार ने परियोजना को समाप्त कर दिया तब हिंसक विरोध भी थम गया।
 
 
रेलमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल लोकलुभावन घोषणाओं और कार्यक्रमों के लिए जाना जाता रहा है और उन्होंने रेलवे की खराब माली हालत को सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। उनके पद छोड़ने के बाद ‍तृणमूल के दिनेश त्रिवेदी को रेलमंत्री बनाया गया, लेकिन उन्हें भी ममता के दबाव के चलते अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने रेल मंत्रालय को बेहतर बनाने की कोशिश की शुरुआत की थी।
 
इसके अलावा कई ऐसी विवादास्पद घटनाएं हुई हैं जिनके कारण ममता बनर्जी की छवि एक झक्की, सनकी और आत्मप्रशंसा में डूबे रहने वाले एक ऐसे राजनीतिज्ञ की बनीं जो कि अपनी गलतियों के बावजूद लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन करना उचित नहीं समझता है। हालांकि यह बात और है कि विपक्ष में होने पर वे इन्हीं बातों के लिए वामपंथी नेताओं को खूब कोसा करती थीं।