गोरी तेरे प्यार में: फिल्म समीक्षा
गोरी के प्यार में पड़ कर फिल्म का हीरो गोबर के बीच गांव में रहना मंजूर करता है। चिकन छोड़ दाल-रोटी खाता है और गांव वालों के लिए पुल बनाता है। इसी तरह की कहानी पर आधारित ‘रमैया वस्तावैया’ कुछ महीनों पहले रिलीज हुई थी। वो फिल्म थोड़ी लाउड थी, जबकि ‘गोरी तेरे प्यार में’ यह बात आधुनिक तरीके से कही गई है। वैसे इस तरह की कहानी बॉलीवुड में नई बात नहीं है। श्रीराम (इमरान खान) को दीया (करीना कपूर) श्रीदेवी कहती है। श्रीराम आलसी, निकम्मा और अमीर बाप की औलाद है। बंगलौर में रहने वाला तमिल है। अमेरिका से पढ़ कर आया है और परिवार वालों के लिए वह एलियन की तरह हो गया है। दीया अन्याय और शोषित लोगों के लिए अपनी आवाज बुलंद करती हैं। नारे लगाती है, धरना देती है, कैंडल जलाती है, रेड लाइट एरिये में जाकर डॉक्यूमेंट्री बनाती है और वक्त मिलता है तो शादियों में ‘टुई’ गाते हुए ठुमके लगाती है। बहुत पुरानी बात है कि दो अलग-अलग मिजाज के लोगों में आकर्षण होता है और इसी को आधार बनाकर इंटरवल तक की कहानी बनाई गई है। निर्देशक और लेखक पुनीत मल्होत्रा ने इस लव स्टोरी को इतना ज्यादा खींचा है कि नींद आने लगती है। तमिल परिवार को लेकर उन्होंने मजाक बनाया है, इमरान और उनके पिता के रिश्तों को कॉमेडी के एंगल से दिखाया है, लेकिन बात नहीं बनती। इमरान और करीना की प्रेम कहानी में भी गहराई नजर नहीं आती। न रोमांस दिल को छूता है और न कॉमेडी लबों पर मुस्कान लाती है। इंटरवल के बाद फिल्म यू टर्न लेते हुए शहर से गांव में शिफ्ट हो जाती है। श्रीराम-दीया में आदर्शों को लेकर टकराव हो जाता है। ब्रेकअप के बाद दीया गुजरात के एक गांव में पहुंच जाती है। हीरोइन को मनाने पीछे-पीछे हीरो भी उस गांव तक ट्रेन, बस, छकड़ा और पैदल जाते हुए पहुंच जाता है। गांव में नदी पर पुल न होने से गांव वालों को बेहद तकलीफ होती है और इसका उपाय दीया और श्रीराम खोजते हैं।
फिल्म के निर्माता करण जौहर हैं इसलिए यह गांव भी उनकी निगाह से दिखाया गया है। करण या पुनीत कभी गांव में घुसे भी नहीं होंगे, लेकिन इतना जरूर सुन रखा होगा कि कच्चे मकान होते हैं, भैंस और धूल होती हैं। लिहाजा ऐसा ही गांव बना दिया गया है जो पूरी तरह बनावटी लगता है। कलेक्टर ऐसा दिखाया है जैसा पुरानी फिल्मों में जमींदार होते थे। पुल बनाने के लिए हीरो हर तरह का हथकंडा अपनाने की कोशिश करता है, लेकिन हीरोइन सिद्धांतवादी है। थोड़ी-बहुत उठापटक होती है और पुल बन जाता है। पुल बनाने वाला ट्रेक इतना सतही है कि हैरत होती है। सब कुछ बेहद आसानी से हो जाता है। शायद यह बात निर्देशक को भी पता थी कि उन्होंने यह मसला आसानी से निपटा दिया है, इसीलिए हीरोइन को हीरो कहता है कि उसे प्रत्येक गांव में जाना चाहिए ताकि कही कोई समस्या नहीं रहे। निर्देशक पुनीत मल्होत्रा हीरो-हीरोइन के बीच आदर्शों के टकराव को दर्शाने में सफल रहे हैं, लेकिन कहानी और स्क्रिप्ट में इतना दम नहीं है कि फिल्म बांध कर रख सके। कुछ सीन और संवाद चुटीले हैं, लेकिन केवल इसी के बूते पर ही फिल्म को अच्छा नहीं कहा जा सकता। इमरान खान के साथ परेशानी यह है कि वे कुछ अलग करने जाते हैं तो दर्शक उन्हें अस्वीकार कर देते हैं और चॉकलेटी बॉय के रूप में नजर आते हैं तो कहा जाता है कि वे एक-सा अभिनय करते हैं। ‘गोरी तेरे प्यार में’ इमरान उसी तरह के किरदार और अभिनय करते दिखाई दिए हैं जैसे ज्यादातर फिल्मों में वे करते हैं। करीना कपूर ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया है, लेकिन उनका किरदार ठीक से लिखा नहीं गया है। अनुपम खेर ने अपनी भूमिका बहुत शानदार तरीके से निभाई है और जब-जब वे स्क्रीन पर आते हैं फिल्म में दिलचस्पी बढ़ जाती है। श्रद्धा कपूर के पास ज्यादा करने को कुछ नहीं था। विशाल-शेखर द्वारा संगीतबद्ध किए गीत भले ही हिट हो रहे हो, लेकिन फिल्म में उनकी खास सिचुएशन नहीं बन पाई है और गानों ने फिल्म की लंबाई को बहुत बढ़ा दिया है।
कुल मिलाकर गोरी तेरे प्यार में फिल्म के हीरो की तरह सुस्त और उबाऊ है। निर्माता : हीरू यश जौहर, करण जौहर निर्देशक : पुनीत मल्होत्रा संगीत : विशाल और शेखर कलाकार : इमरान खान, करीना कपूर खान, अनुपम खेर, श्रद्धा कपूर, ईशा गुप्ता रेटिंग : 1/5