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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 12 नवंबर 2024 (11:16 IST)

dev uthani ekadashi katha 2004: देवप्रबोधिनी एकादशी की पौराणिक कथा

dev uthani ekadashi katha 2004: देवप्रबोधिनी एकादशी की पौराणिक कथा - Prabodhini Ekadashi Vrat Katha
devuthani ekadashi story : आज, 12 नवंबर 2024, दिन मंगलवार को देवप्रबोधिनी/ देवउठनी एकादशी मनाई जा रही है। और इसी दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह भी संपन्न किया जाता है। यह दिन धार्मिक दृष्‍टि से बहुत अधिक महत्व का माना गया है, क्योंकि आज ही के दिन श्री‍हरि नारायण शयननिद्रा से जागकर पृथ्वी का कार्यभार संभालते हैं। इस अवसर पर देवउठनी ग्यारस की कथा पढ़ने का विशेष महत्व है।

आइए यहां पढ़ें देवप्रबोधिनी एकादशी की पौराणिक व्रत कथा :
 
Highlights 
  • देवउठनी एकादशी के दिन जरूर पढ़ें यह कथा। 
  • देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा।
  • देवउठनी एकादशी से जुड़ी एक पौराणिक कथा।
देवप्रबोधिनी/ देवउठनी एकादशी की कथा के अनुसार एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।

उस व्यक्ति ने उस समय 'हां' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे अन्न दे दो। राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। 
 
वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीतांबर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्ध्यान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया। 
 
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता। यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।
 
राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा। लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। 
 
प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ। 
 
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