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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025 (11:18 IST)

Ekadashi vrat katha: पापांकुशा एकादशी पर पढ़ें पापों से मुक्ति दिलाने वाली कथा

Papankusha Ekadashi 2025
Papankusha Ekadashi 2025: वर्ष 2025 में 03 अक्टूबर, दिन शुक्रवार पापांकुशा एकादशी मनाई जा रही है। हिन्दू धर्म में आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व माना गया है। धार्मिक मतानुसार यह तिथि भगवान विष्णु को सबसे अधिक प्रिय है।

यह एकादशी पापों से मुक्ति देकर स्वर्ग प्राप्ति कराने में सहायता करनेवाली मानी गई है। इस दिन के बारे में यह भी मान्यता है कि जो मनुष्य सोना, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, छतरी तथा जूते दान करता है, तो वह यमराज को नहीं देखता है।ALSO READ: Papankusha Ekadashi 2025: पापाकुंशा एकादशी कब है, जानें पूजन के शुभ मुहूर्त, विधि, महत्व और लाभ

आइए यहां पढ़ें पापांकुशा एकादशी की पौराणिक कथा : 
 
कथा: 
 
पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा के अनुसार प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बड़ा क्रूर बहेलिया रहता था।हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति पाप कर्मों में ही उसका पूरा जीवन बीता। जब उसका अंतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिए को लेने आए और यमदूत ने बहेलिए से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है हम तुम्हें कल लेने आएंगे।

यह बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा, हे ऋषिवर! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं। कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। 
 
उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विन शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत रखने के लिए कहा। महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने यह व्रत किया और अपने द्वारा किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया और इस व्रत इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी संचित पाप नष्‍ट हो गए तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। अत: पौराणिक मान्यता के अनुसार यह एकादशी स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्यता, सुंदर स्त्री तथा अन्न और धन देने वाली है। 
 
इस एकादशी के व्रत के बराबर गंगा, गया, काशी, कुरुक्षेत्र और पुष्कर भी पुण्यवान नहीं हैं। हरिवासर तथा एकादशी का व्रत और जागरण करने से सहज ही में मनुष्य विष्णु पद को प्राप्त होता है। इस व्रत के करने वाले दस पीढ़ी मातृ पक्ष, दस पीढ़ी पितृ पक्ष, दस पीढ़ी स्त्री पक्ष तथा दस पीढ़ी मित्र पक्ष का उद्धार कर देते हैं। वे दिव्य देह धारण कर चतुर्भुज रूप हो, पीतांबर पहने और हाथ में माला लेकर गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को जाते हैं। ऐसी इस एकादशी की पौराणिक मान्यता है। 
 
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