श्रावण कृष्ण पक्ष में आने वाली इस एकादशी को कामिका एकादशी कहते है। कुंतीपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर श्रीकृष्ण भगवान ने यह कथा उन्हें बताई थी कि किस प्रकार एक बार स्वयं ब्रह्मा जी ने देवर्षि नारद से यह कथा कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूं। श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी की कथा सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो। जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।
जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। अत: पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन अवश्यमेव करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फंसे हुए और संसाररूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है।
अत: स्वयं भगवान ने यही कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से।
तुलसी दल पूजन का फल चार भार चांदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। ब्रह्माजी कहते हैं कि, हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूं। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएं नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है।
कामिका एकादशी के बारे में एक अन्य कथा के अनुसार प्राचीन काल में किसी गांव में एक ठाकुर जी थे। क्रोधी ठाकुर का एक ब्राह्मण से झगड़ा हो गया और क्रोध में आकर ठाकुर से ब्राह्मण का खून हो जाता है। अत: अपने अपराध की क्षमा याचना हेतु ब्राह्मण की क्रिया उसने करनी चाही, परंतु पंड़ितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया और वह ब्रह्म हत्या का दोषी बन गया।
परिणामस्वरूप ब्राह्मणों ने भोजन करने से इंकार कर दिया। तब उन्होंने एक मुनि से निवेदन किया कि- हे भगवान, मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है, इस पर मुनि ने उसे कामिका एकादशी व्रत करने की प्रेरणा दी।
ठाकुर ने वैसा ही किया जैसा मुनि ने उसे करने को कहा था। जब रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास वह शयन कर रहा था, तभी उसे स्वप्न में प्रभु दर्शन देकर उसके पापों को दूर करके उसे क्षमा दान देते हैं।
कामिका एकादशी की रात्रि को दीपदान तथा जागरण के फल का माहात्म्य चित्रगुप्त भी नहीं कह सकते। जो इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पितृर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं, वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं।
अत: कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है। ब्रह्म हत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। श्रावण मास की कामिका एकादशी की कथा वाजपेय यज्ञ का फल देने वाली मानी गई है।